राजनैतिक चर्चा में “दीदियां”, एक वहां-एक यहां
देश की राजनीति में इन दिनों दो दीदियां काफी चर्चा में हैं। एक तो बहुत पहले से सुर्खियां बटोरती आ रही हैं और एक ने इस चुनाव में दीदी का टाईटल हासिल किया है जो उनके पार्टीजनों ने दिया है।
यूं तो पूरे देश में समय-समय पर शीर्ष नेतृत्व के लिए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों से एक से बढ़कर एक प्रखर नेत्रियां राजनीतिक मंच पर सुर्खियां बटोरती रहीं। कहीं इन्हें अम्मा, राजमाता, तो कहीं काकी-भतीजी के नाम से संबोधन मिलता रहा लेकिन इन दिनों दो दीदी खास चर्चा में हैं।
देश ही नहीं विदेश और खासकर कलकत्ता में ममता बैनर्जी (ममता दीदी) के नाम से फेमस हैं और उन्हें इसी से संबोधित भी किया जाता है।
ममता बैनर्जी की राष्ट्रीय राजनीति में बतौर “दीदी” एक अलग इमेज और सम्मान है। दूसरी तरफ राजनीति में एक नई दीदी का पदार्पण हुआ है जिनका “भाभी” की संज्ञा प्राप्त ज्योत्सना महंत (कांग्रेस) से चुनावी मुकाबला है। वैसे ये नई-नई बनी “दीदी’ भी प्रखर नेत्री और राष्ट्रीय स्तर की पदाधिकारी होने के साथ-साथ अपनी खास पहचान रखती हैं लेकिन जब पार्टी ने छत्तीसगढ़ राज्य के कोरबा लोकसभा सीट से प्रत्याशी घोषित किया, तब इसके बाद से ही वे सरोज दीदी के नाम से ही जानी जाने लगी हैं।
भाजपा के तमाम पदाधिकारी से लेकर कार्यकर्ता उन्हें दीदी संबोधित कर रहे हैं। हालांकि इससे पहले दुर्ग में उन्हें सरोज पाण्डेय के नाम से ही संबोधन मिलता रहा लेकिन दीदी का टाईटल कोरबा ने दिया। दोनों ही नेत्रियां अपने-अपने अंदाज के लिए प्रसिद्ध हैं। एक को लोग सुनना चाहते हैं तो दूसरे को देखने की उत्सुकता रहती है। (सत्या पाल)
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