👉🏻 शहर में सड़क तक निर्माण, दुकान और बेतहाशा मनमानी ने बढ़ाई मुश्किलें
👉🏻 चौड़ी सड़कें भी संकरी होकर बढ़ा रहीं हादसे का खतरा
👉🏻 न मोड़ क्लीयर-न सीधे रास्ते,बेपरवाह वाहनधारकों पर सख्ती नहीं
कोरबा। एक प्रचलित कहावत है- “मर्ज बढ़ता गया, ज्यों-ज्यों दवा की…। कुछ यही हाल कोरबा शहर और आसपास के व्यस्त इलाकों में बढ़ते बेखौफ अतिक्रमण को लेकर कहा जा सकता है। अतिक्रमण रोधी अभियान जब हाल-फिलहाल शुरू किया गया तो लग रहा था मानो जनता को बड़ी राहत मिलने वाली है लेकिन जैसे-जैसे यह उपचार प्रारंभ हुआ, वैसे-वैसे वोट बैंक की राजनीति ने प्रशासन के पैरों में जंजीर बांध दी। सख्त प्रशासनिक कामकाज में राजनीतिक दखल का खामियाजा आम जनता को ही भुगतना पड़ रहा है जो सड़कों पर भी डर-डर कर आवागमन करने के लिए मजबूर हैं।
इन दिनों जिस तरह से शहर की व्यस्त और चौड़ी से लेकर संकरी सड़कों पर व्यापारिक अतिक्रमण बेखौफ तरीके से बढ़ने लगा है, वह न सिर्फ चिंता का विषय है बल्कि शहर को मॉडल के रूप विकसित करने वालों के लिए चिंतनीय भी है। बेखौफ अतिक्रमण करने वालों को सिर्फ अपनी पड़ी है, दूसरों की तकलीफों से कोई परवाह नहीं। यही वजह है कि वह अपना क्षेत्र छोड़कर आम सड़क तक न सिर्फ मनमाना निर्माण कर रहे हैं, टाइल्स लगवा रहे हैं फर्शीकरण कर रहे हैं बल्कि दुकान भी सजा रहे हैं,आधी सड़क तक पार्किंग भी बना रखे हैं। जो लोग कानून और नियम का सम्मान करते हैं वह अपने दायरे में रहकर व्यापार कर रहे हैं लेकिन जिन्हें कानून जेब में रखकर चलने की आदत पड़ चुकी है, वह प्रशासन को आंखें दिखा कर उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं।

सारा शहर ऐसे लोगों से त्रस्त है, इनकी वजह से सुबह से लेकर रात तक मुख्य सड़कों पर आवागमन बाधित होने के साथ-साथ जाम की समस्या निर्मित हो रही है। वैसे भी लोग कई महीनो से गड्ढों में सड़क ढूंढ कर चलने के लिए मजबूर हैं और ऊपर से सड़क तक दुकान लगाने वालों के कारण आधी सड़क तक खरीदारों के दो पहिया और चार पहिया वाहन बेतरतीब खड़े होने से कौन कब चलते-चलते इनसे टकरा जाए, यह डर बना रहता है।

जनप्रतिनिधियों की बेख्याली और मनमानी करने की छूट देने की प्रवृत्ति ने समस्याओं को बढ़ाने का ही काम किया है। अतिक्रमणकारियों में ना तोड़फोड़ का भय है और ना ही जुर्माना का डर। राजनीतिक बेड़ियों में जकड़े प्रशासनिक अधिकारी चाह कर भी शहर को ना तो सुंदर बना पा रहे हैं और ना ही व्यवस्थित कर सक रहे हैं। आलम यह है कि व्यस्त क्षेत्र का ना तो कोई मोड़ क्लीयर रहता है और ना ही सीधे रास्ते। सभी तरह के रास्तों पर किसी न किसी तरह का स्थाई-अस्थाई अतिक्रमण कायम रहने से सुरक्षित आवागमन की अवधारणा निर्मूल साबित हो रही है।
ऐसे में शहर का अनियमित विकास देखते आ रहे पुराने लोग पुराने अधिकारियों को, उनकी कार्यशैली, उनकी सख्ती और ऐसे सख्त अधिकारियों के कामकाज में शून्य राजनीतिक दखल को याद करने से नहीं चूकते।
बेखौफ अतिक्रमण पर सख्ती की धमक बढ़ाने की जरूरत लगातार महसूस की जा रही है लेकिन यहां जाम की समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए अधिकारियों के सिर्फ चौक-चौराहे पर दौरे हो रहे हैं। वैकल्पिक रास्ते निकल जा रहे हैं, नई सड़कों से समाधान ढूंढने की कोशिश हो रही है किंतु जो आंखों देखा नजर आ रहा है उसे नजरअंदाज किया जा रहा है। इस बीच ऐसे वे सभी छोटे-बड़े व्यापारी नि:संदेह धन्यवाद/साधुवाद के पात्र हैं जो अपने दायरे में रहकर दूसरों की मुश्किलों को समझते हुए बिना किसी अतिक्रमण की प्रतिस्पर्धा से ग्रस्त होकर व्यापार कर रहे हैं।
राजनीतिक कर्णधारों को चाहिए कि नियम-कानून का पालन करने-कराने के मामले में बेड़ियाँ न बनें बल्कि स्वयं भी सड़क पर उतरकर ऐसे बेलगाम लोगों को दायरे में और कायदे में रहकर व्यापार करने के लिए अपील करते नजर आएं। प्रशासनिक कार्रवाई में सहयोगी बनें, ना कि जनता के लिए मुसीबत का कारण।



