प्रभारी मंत्री से मिला भू-विस्थापितों का प्रतिनिधि मंडल
0 10 बिंदुओं का ड्राफ्ट सौंपकर समस्याओं के समाधान की मांग
कोरबा। जिला पुनर्वास एवं पुनर्व्यवस्थापन समिति की बैठक से पूर्व उपमुख्यमंत्री और जिले के प्रभारी मंत्री श्री अरुण साव जी से ऊर्जाधानी भूविस्थापित किसान कल्याण समिति के एक प्रतिनिधि मंडल ने 10 बिंदुओं का ड्राफ्ट सौपा ।
जिला पुनर्वास व पुनर्व्यवस्थापन की बैठक के लिए प्रवास में आये प्रभारी मंत्री अरुण साव को एनटीपीसी के विश्राम गृह कावेरी भवन में ऊर्जाधानी भूविस्थापित किसान कल्याण समिति के प्रतिनिधि मंडल जिसमे सपुरन कुलदीप ,विजयपाल सिंह तंवर , रुद्र दास , अनसुइया राठौर ,केशव नारायण जायसवाल , सन्तोष चौहान , ललित महिलांगे ,जगदीश पटेल ,साहिल राठौर शामिल थे , ने सौजन्य मुलाकात किया।
वर्ष 2010 से 2017 तक जिला पुनर्वास समिति की बैठकों में लिए गए निर्णय और जारी दिशा निर्देशों का पालन नही होने की शिकायत किया । दिए ज्ञापन में कोल इंडिया पालिसी की वैधानिकता पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि छत्तीसगढ़ आदर्श पुनर्वास नीति 2007 के तहत पुनर्वास समिति ने अपने मूल सिद्धान्तो के अनुरूप कार्य नही किया जिससे मूल किसानों और भूमिहीन किसानों के साथ अन्याय हुआ है । एसईसीएल ,एनटीपीसी ,सीएसईबी सहित सभी आद्योगिक संस्थानों में अब केंद्रीय भूअर्जन अधिनियम व पुनर्वास ,पुनर्व्यवस्थापन अधिनियम 2013 प्रभावी होने पर संस्थानों की अपनी पालिसी लागू करना गैर वैधानिक है इसलिए इसका पालन कराने के लिए आवश्यक कार्यवाही किया जाना चाहिए । सन्गठन की ओर से प्रभारी मंत्री व पुनर्वास समिति के अध्यक्ष के साथ ही जिला पुनर्वास व पुनर्व्यवस्थापन समिति के सभी सदस्यों तथा सचिव कलेक्टर को भी ड्राफ्ट सौपा गया है ।
▪️ड्राफ्ट के मसौदे
▪️2017 की जिला पुनर्वास समिति की बैठक के लम्बे अंतराल के बाद आज यह बैठक हो रही है जिसके कारण बहुंत से मुद्दे निराकृत नहीं हुए हैं |
हर तीन महीने में इसकी रिपोर्ट प्रकाशित किये जाने की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए इस से पूरी प्रक्रिया की बेहतर समीक्षा हो सकेगी और आवश्यक पुनर्वास समिति की बैठक छ: महीने अथवा हर साल हो सकेगी जो अब कई-कई वर्षो तक नहीं हो रहे|
▪️राज्य स्तरीय एवं जिला स्तरीय पुनर्वास समिति का गठन छत्तीसगढ़ राज्य की आदर्श पुनर्वास नीति, 2007 के तहत किया गया है| कोरबा की जिला पुनर्वास समिति का जिस नीति के तहत गठन हुआ है वो उस नीति के उद्देश्यों और मार्गदर्शी सिद्धांतों के विपरीत जाकर कोल इंडिया की आर एंड आर पॉलिसी को लागू करने का कार्य किस कानून या प्रावधान के अंतर्गत हुआ यह स्पष्ट होना चाहिए| 2010 की बैठक में कोल इण्डिया पालिसी को लाने का प्रस्ताव आया था किन्तु उससे पहले से 2004 -2009 में अर्जित ग्रामो में इसे कैसे लागू किया गया |
कोल इण्डिया पालिसी के कारण छोटे रकबे वाले किसानो को रोजगार से वंचित होना पड़ा है और तुरंत जमीन खरीद कर लोंगो ने रोजगार हासिल किया है जिससे मूल निवासियों को लाभ नहीं मिला | इसलिए केन्द्रीय सरकार द्वारा पारित भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार 2013 के अनुसार जो कि आज की स्थिति में बेहतर नीति है उसका पालन किया जाए |
▪️परियोजना स्तर पर पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन समिति का गठन करने की आवश्यकता:
कोरबा जैसे औद्योगिक क्षेत्र में जहां विश्व के सबसे बड़े खदानों में शामिल होने वाली एसईसीएल की खदाने है और बड़ी क्षमता वाले एनटीपीसी, राज्य सरकार के और निजी पॉवर प्लांट है तो ऐसे में अब तक यहाँ परियोजना आधारित पुनर्वास समिति बनाए जाने की दिशा में कोई कार्य नहीं हुआ है| इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है|
▪️वन भूमि पर आश्रित अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासियों के अधिकारों का संरक्षण नहीं हो रहा और अब भी वे उचित प्रतिकर से वंचित है:
जिन लोगों को वन अधिकार एवं आबादी पट्टा के व्यक्तिगत अधिकार पत्रक (पट्टे) मिले है उनका उचित प्रतिकर आज भी लोगों को नहीं मिला है| इसका एक कारण यह भी है कि वन अधिकार के पट्टों के अनुसार रिकॉर्ड ऑफ़ राइट्स दुरुस्त नहीं किया गया है| साथ ही जिन लोगों ने वन अधिकार कानून के तहत दावा प्रक्रिया नहीं कर पाए है ।
▪️आने वाली पीढ़ियों को रोजगार के लिए अपात्र करना न्यायसंगत नहीं है, उन्हें भी रोजगार का अधिकार मिलना चाहिए:
जो जमीन उनके जीवन यापन का मुख्य साधन थी उसका अर्जन असल में पूरी आने वाली पीढ़ी की आजीविका को खतम कर देता है| ऐसे में आने वाली पीढ़ियों को रोजगार के लिए अपात्र करना अन्याय है अत: अर्जन के बाद जन्म लेने वाले अभ्यर्थी को रोजगार की पात्रता दी जाए और रैखिक सबंध की बाध्यता को समाप्त कर परिवार के सहमती से किसी भी एक सदस्य को रोजगार के लिए पात्रता किया जाए |
▪️SECL की सभी खदानों की बैकफिलिंग और माइन क्लोसर प्लान की स्थिति का विश्लेषण होना चाहिए:
खनन के पश्चात् ओवर बर्डन की मिट्टी को वापस गड्ढो में भरा जाए और टॉप सौइल से पूरी जमीन को रिक्लेम किया जाए ताकि उस भूमि को किसी उपयोग में पुनः लाया जा सके| इसी जमीन में लोगों को बसने या पुनः आजीविका के उपाय किये जा सकते है जो एक बेहतर विकल्प है जिस पर ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है|
कोरबा जिले के अंडरग्राउंड माईन्स धीरे धीरे बंद किये जा रहे हैं | उपरी सतह पर किसान आज भी कृषि कार्य कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं ऐसे समस्त भूमि को मूल खातेदारों को वापसी कराने के लिए उचित प्रबंध करने की आवश्यकता है |
▪️SECL अपनी टेंडर प्रक्रियाओं में आवश्यक बदलाव के साथ यह सुनिश्चित करे कि इसमें 80% तक स्थानीय भू-विस्थापितों को प्राथमिकता दी जाएगी|
छत्तीसगढ़ की पुनर्वास नीति के अनुसार तो रोजगार सभी को मिलना चाहिए जिनकी भूमि का अर्जन किया गया हो| भू-अर्जन कानून में भी कोई कटऑफ संख्या नहीं है, लेकिन अगर यह नहीं हो पा रहा है तो वैकल्पिक रोजगार को बढ़ावा देने का कार्य होना चाहिए जो टेंडर प्रक्रियाओं के माध्यम से हो सकता है| भूविस्थापितों के लिए सभी टेंडरों में आरक्षण और संख्या को बढाने पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है | इस पर जिला पुनर्वास समिति को संज्ञान लेना चाहिए|
▪️भूविस्थापित बेरोजगारों का कौशल उन्नयन और स्वयं सहायता समूहों को प्रशिक्षित कर रोजगार के लिए ज्यादा से ज्यादा अवसर प्रदान करना |
पुनर्वास नीति में यह बात स्पष्ट है कि विस्थापित परिवारों को प्रशिक्षित कर उनके रोजगार के लिए साधन उपलब्ध कराये जायेंगे , पर SECL अथवा जिले के अन्य उद्योगों में इस बात का पालन नहीं किया जा रहा है जमीन अर्जन के बदले मुआवजा प्रदान करते समय कौशल उन्नयन के नाम पर एक राशि जोडकर प्रदान किया जाता है जो पर्याप्त नहीं है | प्रशिक्षण और संस्थान में रोजगार की पूर्णत: गारंटी के लिए कार्य योजना तैयार किया जाना चाहिए |
▪️पुनर्वास ग्रामो और प्रत्यक्ष प्रभावित ग्रामो में शिक्षा ,स्वास्थ ,रोजगार के साथ बुनयादी सुविधाओं में विस्तार |
पुनर्वास ग्रामो सहित खनन क्षेत्र के कारण प्रत्यक्ष प्रभावित ग्रामो में सीएसआर अथवा जिला खनिज न्यास निधि के माध्यम से शिक्षा ,स्वास्थ ,रोजगार के साथ बुनयादी सुविधाओं में विस्तार करने की आवश्यकता है | इसमें प्रधानमंत्री आवास योजना के लाभ से वंचित होने वाले प्रभावितों को मकान बनाने के लिए अनुदान देने पर भी विचार करना चाहिए |
▪️अर्जित होने ग्रामो के मकान व अन्य परिसम्पतियों के मुआवजा में कटौती बंद कर केन्द्रीय मूल्यांकन बोर्ड के मार्गदर्शिका का पालन करना|
एस ई सी एल द्वारा जमीन अर्जन करने के बाद 20 साल तक खनन शुरू नहीं किया जाता और इतने दिनों तक जमीन को बंधक रख लिया जाता है , इस बीच ग्रामीणों द्वारा बनाए गए मकान और उनकी परिसम्पतियों की मुआवजा में 60% तक कटौती किया जा रहा है जो कि केन्द्रीय मूल्यांकन बोर्ड के मार्गदर्शिका में दिए गए प्रावधानों का उलंघन है | प्रबन्धन द्वारा गलत तरीके से और भयभीत करके मुआवजा प्रदान किया जा रहा है अत: केन्द्रीय मूल्यांकन बोर्ड के मार्गदर्शिका में दिए गए प्रावधानों का पालन कराने हेतु दिशा निर्देश जारी किया जाना चाहिए |