SECL: आखिर जान से क्यों खेल रहे रूपचंद, कोयले की कमाई ज्यादा पसंद या कमाई का माध्यम बने…
0 जिस जगह पर जान का खतरा, वहीं क्यों रहना चाहते हैं जूनियर टेक्निकल इंस्पेक्टर
0 क्या इनके अलावा दूसरा कोई ईमानदार अफसर नहीं, जो रोक सके कोयले की कालाबाजारी
कोरबा। कोरबा जिले में संचालित SECL की खदानें कभी कोयला चोरी तो कभी डीजल चोरी के मामलों को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहते आए हैं। इन दिनों कोरबा क्षेत्र के अधीन पाली विकासखंड में संचालित सरायपाली की खुली खदान काफी चर्चा में है। इसकी वजह है यहां के जूनियर टेक्निकल इंस्पेक्टर रूपचंद देवांगन, जो कि मूल रूप से सैंपलिंग का काम के लिए यहां पदस्थ किए गए हैं।
लगभग 10 माह पहले इनकी पदस्थापना सुराकछार माइंस में थी। विभागीय तौर पर तबादला सरायपाली परियोजना में किया गया। यहां पदस्थापना के बाद वह पिछले दिनों सैंपलिंग कार्य की आड़ में कोयला परिवहन में लगे ट्रकों/ ट्रेलरों के चालकों से वसूली को लेकर हुए विवाद के बाद चर्चा में आए। इसके बाद यह कहानी बढ़कर थाना तक पहुंची और रूपचंद ने थाना में की गई शिकायत को दूसरे-तीसरे दिन ही वापस ले लिया। मामला पटाक्षेप हो गया और लोगों ने अपने जेहन से यह बात भुला भी दी, लेकिन एकाएक पिछले दिनों बिलासपुर हाईकोर्ट का प्रारंभिक निर्णय आया जिसमें रूपचंद देवांगन के तबादला पर स्थगन आदेश जारी कर दिया गया।
दरअसल रूपचंद देवांगन और कोयला ट्रांसपोर्टरों के बीच हुए विवाद के तूल पकड़ने के बाद तथा रूपचंद की कार्यशैली को लेकर शिकायत, अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम करने की शिकायत, और खासकर रूपचंद ने अपने जान माल पर खतरा बताया था जिसके मद्देनजर प्रबंधन ने गंभीरता से संज्ञान लेते हुए सरायपाली परियोजना से हटकर रूपचंद देवांगन को फिर से सुराकछार में पदस्थ कर दिया, जो कि उनके निवास से काफी नजदीक भी है।
0 रक्षक थानेदार पर ही जताया सन्देह
निःसन्देह रूपचंद देवांगन युवा अधिकारी हैं और उनमें काम करने का जज्बा भी है, यह दूसरी बात है कि वह अपने कार्य के प्रति कितने ईमानदार हैं और इसकी आड़ में किस-किस तरह के लोगों की अप्रत्यक्ष तौर पर मदद कर रहे हैं व अपनी जान पर एक ओर खतरा बताते हैं और दूसरी ओर वापस उसी जगह पर जाना चाहते हैं। जिस क्षेत्र के थानेदार पर भी उन्हें संदेह है कि वह उनकी सुरक्षा नहीं कर पाएंगे ,उस क्षेत्र के अपने अधिकारी पर भी उन्हें संदेह है कि वह उनकी हत्या करवा सकते हैं और ट्रांसपोर्टर तो टारगेट में रखा ही गया है, इन सभी सूरतों में आखिर ऐसी कौन सी वजह है कि रूपचंद देवांगन सुरक्षित स्थान पर काम करने की बजाय इस विवादित स्थल पर दोबारा आना चाहते हैं ? जहां उनके कहे अनुसार जान की बाजी लग सकती है।
वैसे इतना तो स्पष्ट है कि कोयला के कारोबार में प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा है और संबंधित लोग अपने-अपने पक्ष को मजबूत रखकर काम करना चाहते हैं ताकि कहीं भी उनकी गाड़ी न फंसे। रूपचंद देवांगन एक मोहरा की तरह इस्तेमाल हो रहे हैं, इस पर भी कोई संदेह नहीं। रूपचंद ने उच्च न्यायालय में तर्क दिया है कि उनका तबादला मात्र 10 महीने के भीतर ही सरायपाली से पुनः सुराकछार कर दिया गया है लेकिन उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है और थाना में दी गई अपनी शिकायत का भी जिक्र किया है जिसमें जान का खतरा भी बना हुआ है।
0 अपने अधिकारियों को ही कटघरे में खड़ा किया
वैसे, कोई भी सरकारी अधिकारी- कर्मचारी अपने कार्यस्थल पर कोई भी विवादित कार्य करने से परहेज करता है ताकि उसका सिविल खराब ना हो और किसी भी तरह की जांच पड़ताल बैठने के कारण उसका प्रमोशन आदि बाधित न हो, लेकिन रूपचंद देवांगन एक ऐसे विवादित युवा अधिकारी के तौर पर सामने आ रहे हैं जो उनके जान माल की सलामती चाहने वाले अधिकारियों को ही कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। वे यह क्यों भूलते हैं कि उनके द्वारा दूसरों की तरफ उठाई गई एक उंगली के विरुद्ध उनकी तरफ भी चार उंगलियां उठी हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं की सरायपाली परियोजना खदान में रूपचंद देवांगन, ROM और स्टीम कोयला को भ्रष्टाचार का मुद्दा बनाकर ट्रांसपोर्टरों के बीच विवाद की एक बड़ी कड़ी के रूप में उभरे हैं जबकि यह एक टेक्निकल मामला है जिसके बारे में ऊपर बैठे अधिकारी रूपचंद से शायद ज्यादा ही समझ रखते होंगे। अब दूसरी तरफ रूपचंद के कंधे पर बंदूक रखकर चुनिंदा ट्रांसपोर्टर कोयले की काली कमाई करने के लिए बेताब है। मजे की बात तो यह है कि वह चुनिंदा ट्रांसपोर्टर भी अपने ही बीच के जयचंद के कारण अपने ही लोगों से बगावत कर बैठा है।
0 तकनीकी अधिकारी की मानें तो…
जहां तक रूपचंद देवांगन ने अपने शिकायत में एक बात का उल्लेख किया है कि ROM कोयला के स्थान पर स्टीम कोयला निकाला जाता है,तो इस सम्बन्ध में SECL के ही अधिकारियों से बातचीत में स्पष्ट हुआ है कि कोयला निकालते (खनन करते) समय ओबी (ओवरबर्डन) में ब्लास्ट करना पड़ता है, जिसके कारण 10 प्रतिशत कोयला भी अनुमान के अनुसार बाहर आ जाता है, जिसको अगर कोल स्टाफ में डाला जाए तो राजस्व की बचत होती है और अगर इसे ओवरबर्डन स्टॉक मतलब मिट्टी के स्टॉक में डाला जाएगा तो आग लगने की संभावना रहती है। इससे पर्यावरण संतुलन बिगड़ता है, इसलिए सीसीएल 10 फीसदी कोयले को स्टॉक में डालकर डोजर मशीन से डोजरिंग कर व्यापारियों को बेचने के लिए तैयार रहती है।