कोरबा। औद्योगिक विकास की सीढ़ियां चढ़ते कोरबा जिले की खूबसूरती को ब्लैक एंड व्हाइट प्रदूषण का ग्रहण लगता जा रहा है। एक तरफ विद्युत संयंत्रों से निकलने वाली राख फ्लाई ऐश के गुबार से जहां आसपास का शहर व ग्रामीण इलाका राख के चादर में ढक जाता है तो दूसरी तरफ कोयलांचल में कोल डस्ट की काली छाया अपने आगोश में क्षेत्र को समाहित कर लेती है। दोनों ही सूरत में ब्लैक एंड व्हाइट प्रदूषण झेलने के लिए क्षेत्रवासी मजबूर हो चुके हैं। इन मजबूरियों के बीच उनका जीना, खाना, पीना, रहना तब दुश्वार हो जाता है जब मौसम में बदलाव होकर आंधी-तूफान का दौर चलता है। हल्की सी हवा चलने पर भी ब्लैक एंड व्हाइट प्रदूषण सहज ही देखने को मिल जाता है।
आज रविवार को शाम के वक्त मौसम में आए बदलाव ने कोरबा के एक हिस्से को फ्लाई ऐश तो दूसरे हिस्से को कोल डस्ट से आच्छादित कर दिया। कोयलांचल क्षेत्र सर्वमंगला, कुसमुण्डा,दीपका,गेवरा आदि खदान प्रभावित इलाकों,कालोनियों, गांवों में कोल डस्ट ने हलाकान किया। वैसे यह रोजमर्रा की बात है लेकिन हवा चलने पर बात और बिगड़ जाती है।
0 पर्यावरण विभाग ने आंख मूंद लिया, ऊर्जाधानी संगठन चलाएगी आंदोलन
एसईसीएल मेगा परियोजना दीपका गेवरा में रोजाना कोयला खदानों, साईलो, साइडिंग और रोड सेल ट्रांसपोर्टिंग से कोयले के उड़ते डस्ट से आम नागरिकों को प्रतिदिन शुद्ध हवा तक नसीब नहीं हो पा रही है। पर्यावरण विभाग भी कोयले की उड़ती धूल से राहत दिलाने के लिए कार्यवाही करने की बजाय आंख में पट्टी बांधकर बैठा है। प्रबंधन और आउटसोर्सिंग कंपनी के अधिकारियों द्वारा कोयला निकालने, खदान का विस्तार को महत्व दिया जा रहा है किन्तु खदान में सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं। रिहायशी इलाकों तक खदानों का विस्तार किया जा रहा है। दीपका के नागरिकों में उड़ती कोल डस्ट से काफी आक्रोश है और कभी भी कोयला खदान में आंदोलन हो सकता है। कई प्रकार की श्वास सम्बन्धी बीमारियां कोयले के डस्ट से हो रही है। प्रबंधन कोल डस्ट को उड़ने से रोकने के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं कर रही है।।बड़े-बुजुर्ग ज्यादा परेशान हैं।

ऊर्जाधानी संगठन के प्रदेश मीडिया प्रभारी ललित महिलांगे ने कहा है कि दीपका-गेवरा एशिया की सबसे बड़ी कोल माइंस है। राज्य व देश को सबसे अधिक राजस्व देने के बाद भी यहां के नागरिकों को उड़ती कोयले की डस्ट और प्रदूषण से बचाने के लिए पर्यावरण विभाग, एसईसीएल प्रबंधन और आउटसोर्सिंग कंपनियों के अधिकारियों के द्वारा पुख्ता इंतजाम करने की बजाय कोयला खदानों के विस्तार, ट्रांसपोर्टिंग, साइडिंग से लोडिंग इसी सब पर अधिक महत्व दिया जा रहा है। इस विकट समस्या पर संबंधित विभाग के अधिकारी गंभीर नहीं होंगे तो संगठन की ओर से आंदोलन किया जाएगा।