0 परला में सामने आया मामला, हाथी प्रभावित वाले दोहरी मार झेल रहे
0 कुछ रेंजरों-बीटगार्ड पर सिंडिकेट की तरह काम करने का आरोप
कोरबा। कोरबा जिले के जंगलों में लंबे समय से “जंगलराज” चल रहा है। समय-समय पर “जंगलराज” और “वसूलीराज” के मामले सामने आते ही रहते हैं। वसूली राज के कारण ग्रामीण काफी परेशान हैं। वन्य क्षेत्र से लगे गांव में रहने वालों के लिए वन मार्गों और वन इलाकों से आना-जाना मजबूरी है लेकिन इसी मजबूरी का फायदा उठाकर उनके साथ मौका देखकर वसूली करने का काम चंद वन अधिकारी-कर्मचारी कर रहे हैं।
ऐसा ही एक मामला कटघोरा वन मंडल के अंतर्गत पोड़ी-उपरोड़ा ब्लॉक के ग्राम पंचायत परला के कापा नवापारा में सामने आया है। यहां पिछले साल बरसात के समय हाथियों ने एक ग्रामीण गुड्डू साहू का खेत तहस-नहस कर दिया। खेत में खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचा खेत के पार को तोड़ दिया। किसान गुड्डू साहू को वन विभाग से ठीक-ठाक मुआवजा और राहत की उम्मीद थी लेकिन उसे सिर्फ फसल नुकसान का मुआवजा दिया गया, उसके खेत को हाथियों से हुए नुकसान का ना तो मुआवजा मिला, ना तो किसी तरह का मरम्मत/ सुधार कार्य कराया गया। साल भर इंतजार के बाद इस बरसात से पहले गुड्डू साहू ने खेत का पार (मेड़) बनवाने के लिए काम करना शुरू किया। उसने पिंटू साहू (पिंकू) को इस काम का जिम्मा सौंपा। पिंटू साहू ने किराए पर ट्रैक्टर मंगवा कर खेत में सुधार का कार्य शुरू कराया। दो ट्रैक्टर इस कार्य के लिए लगाए गए थे।
बताया गया कि ट्रैक्टर वालों के द्वारा गुड्डू साहू के खेत के बगल की वन भूमि से तीन-चार ट्रैक्टर मिट्टी का उठाव कराया गया और खेत के पार में डाला गया था। दुर्योगवश इस कार्य के दौरान वहां पर वन विभाग का एक कर्मचारी बीटगार्ड पहुंचा और उसके द्वारा गुड्डू साहू से बात कर पहले खेत का कब्जा हक की जानकारी ली गई। निजी पट्टा की भूमि होने से वह कुछ नरम पड़ा फिर गुड्डू साहू ने जवाब दिया कि 1 साल से मेरा खेत यूं ही पड़ा हुआ है, और इस बरसात से पहले उसकी मरम्मत करना जरूरी है तो उसने काम ठेके पर पिंटू साहू को दे दिया है। अब वन कर्मी ने गुड्डू साहू को किनारे कर दिया और किराए पर लगाए गए दोनों ट्रैक्टर के चालकों को लपेटे में लिया। ट्रेक्टर चालकों से बात करते हुए वन भूमि से मिट्टी उठाव करने पर कार्रवाई की बात करते हुए फटकार लगाया। जानकारी मिलने पर पिंटू साहू वहां पहुंचा और इस बीच वन कर्मी ने अपने अन्य साथियों को बुला लिया और फिर दोनों पक्ष में जमकर बहस हुई। ट्रेक्टर को मोरगा ले जाया गया और यहां कार्यालय में वन कर्मियों पर अश्लील गाली-गलौज करने का भी आरोप लगा है। अंतत: दोनों ट्रैक्टर को कब्जे में लेकर इसे छोड़ने के एवज में 50000 रुपये में सौदा किया गया। बात ले-दे कर 25000 में तय हुई। ट्रैक्टर वाले ने 20000 रुपये नगद रेंजर को दिया और 5000 रुपये चोटिया में किसी एक निजी बैंक से जुड़े युवक के फोन-पे पर ट्रांसफर कराया। इसके बाद दोनों ट्रैक्टर छोड़े गए लेकिन इस पूरी कार्रवाई और लिए गए रुपए के संबंध में या चालानी कार्रवाई के संबंध में किसी भी तरह का कोई रसीद/ पर्ची ट्रैक्टर चालकों को तत्काल अथवा 26 मई के घटनाक्रम के चार दिन बाद भी नहीं दिया गया,जबकि इस बीच कोई कार्यालयीन अवकाश भी नहीं है।
0 खेत मालिक परेशान,काम अधूरा
इधर उक्त घटनाक्रम के बाद ट्रैक्टर चालक काम अधूरा छोड़कर चले गए और गुड्डू साहू का खेत जस का तस पड़ा हुआ है। गुड्डू साहू को इस बात का मलाल है कि एक तो वन विभाग वालों ने हाथी से हुए नुकसान के बाद उसके खेत को बनवाया नहीं और आसपास की जमीन से मिट्टी उठाव करने पर बेमतलब की कार्रवाई को अंजाम दिया। पिंटू साहू को इस बात का क्षोभ है कि तमाम तरह के अवैधानिक कार्य जंगल क्षेत्र में हो रहे हैं, लेकिन ट्रेक्टर चालकों द्वारा अनजाने में 2-4 ट्रिप मिट्टी लेकर किसान का खेत मरम्मत करने का काम किए जाने पर आपत्ति की गई।
अगर कार्रवाई एक बार वन विभाग के नियम अनुसार मानें तो ठीक कही जा सकती है लेकिन जो जुर्माना लिया जाना था वही लेते, उसकी पर्ची देते रसीद देनी चाहिए थी लेकिन जिस प्रकार से 50000 में सौदा कर 25000 रुपए वसूला गया उससे ट्रैक्टर चालकों को नुकसान हुआ है।
0 कुछ रेंजर और बीट गार्ड चला रहे वसूली सिंडिकेट
स्थानीय ग्रामीणों की मानें तो आसपास के तीन-चार रेंजर ने मिलकर एक सिंडिकेट बना रखा है उनके साथ बीट गार्ड भी शामिल हैं। परला के मामले में अपने कार्यक्षेत्र से बाहर जाकर बीट गार्ड के द्वारा रेंजर , डिप्टी रेंजर का साथ दिया गया और इस पूरे वसूली में वह भी शामिल था। ग्रामीण बताते हैं कि हाथी प्रभावित क्षेत्र होने के कारण जंगल से लकड़ियाँ आदि लाने के लिए पैदल आने-जाने की बजाय बाइक का इस्तेमाल करते हैं तो उन्हें भी रोक कर बेवजह की वसूली की जाती है। जंगल की लकड़ी लाने का आरोप लगाकर उनसे पैसे लिए जाते हैं किन्तु कोई रसीद नहीं दी जाती। इस तरह के मामले में पिछले 6 माह पूर्व की गई कुछ बाइक सवार ग्रामीणों से वसूली के बाद आज तक संबंधितों को रसीद तक नहीं दी गई है।
0 उच्च अधिकारी भी नहीं लेते संज्ञान
बताते चलें कि जंगल क्षेत्र के नदी- नालों से भी बड़े पैमाने पर रेत,मिट्टी,मुरुम खनन के अलावा जंगल से इमारती महत्व के वृक्षों को काटकर चोरी, एक तरह से तस्करी किया जा रहा है। प्रभावशाली लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं होती किंतु सीधे-साधे ग्रामीणों को या उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर कारवाई का भय दिखा कर उनसे वसूली जरूर हो रही है। ग्रामीणों में इस बात को लेकर आक्रोश और व्यथा है कि वन विभाग के कर्मी अवैध गतिविधियों पर तो रोक नहीं लगाते लेकिन सीधे-साधे ग्रामीणों को मौका देख-देख कर अपनी वसूली का शिकार बनाते रहते हैं। इसके पहले भी मामले सामने आ चुके हैं जिसमें प्रधानमंत्री आवास के लिए रेत ट्रैक्टर जंगल मार्ग से गुजरने की सजा बतौर ट्रेक्टर छोड़ने के आवाज में एसडीओ का हवाला देकर 25000 की वसूली की गई थी,औऱ चालान अलग से काटा गया। मामला तूल पकड़ने के बाद इसे कागजी कार्रवाई का रूप दिया गया। इस मामले में तो सीधे वन मंत्री से भी शिकायत की गई थी लेकिन डीएफओ और एसडीओ की मेहरबानी से दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और वन मंत्रालय ने भी किसी तरह का संज्ञान नहीं लिया। ऐसे अनेक मामले हैं जिनमें राज्य के वन मंत्री को सीधे शिकायत की गई और उनसे दखल की अपेक्षा की गई लेकिन मंत्री से लेकर वन विभाग के बड़े अधिकारियों के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। बड़े अधिकारी भी मामलों को देख-समझ कर अपने मतलब के हिसाब से कार्रवाई करते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं तभी तो फ़ाइलें वर्षो से दबी रह जाती हैं और चूना लगाने वाले अधिकारी-कर्मी ठाठ से दूसरी चपत लगाने में जुटे रहते हैं।