0 पूर्व् मंत्री ने भू-विस्थापित परिवारों की पीड़ा पर केन्द्रीय कोयला मंत्री को लिखा पत्र
“कोयला खदानों में अपना पसीना बहाने वाले मेहनतकश मजदूर वर्ग कॉलोनियों में कीड़े-मकोड़ों जैसी जिन्दगी जीने को मजबूर हैं। मजदूर कॉलोनियों में चारों तरफ कचड़ों के अंबार दिखाई दे जाएंगे, सड़कों की दशा ऐसी है कि पैदल चलना भी मुश्किल है। अभी गर्मी की शुरूआत हो रही है लेकिन कॉलोनियों में पेयजल संकट गहराने लगा है।”बुनियादी समस्याओं का समाधान करने की दिशा में प्रबंधन का ध्यान क्यों नहीं जाता समझ से परे है।
0 भांडा न फूट जाए, इसलिए मंत्री से मिलने न दिया
कोरबा। कुछ ऐसे ही सवालों में एसईसीएल प्रबन्धन को कटघरे में खड़े करते हुए छत्तीसगढ़ के पूर्व् राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने केंद्रीय कोयला मंत्री जी.किशन रेड्डी को पत्र लिखा है। केन्द्रीय कोयला मंत्री के प्रवास को लेकर श्री अग्रवाल ने कहा कि जिन लोगों के जरिए इस तरह की समस्याओं की जानकारी आपको मिल सकती थी, ऐसे लोगों को प्रबंधन की सोची समझी रणनीति के तहत आपके समक्ष उपस्थित होने से रोक दिया गया, क्योंकि प्रबंधन को भय था कि मंत्रालय का कार्यभार ग्रहण करने के बाद छत्तीसगढ़ राज्य के कोरबा जिले में आपके प्रथम प्रवास पर ही आपके समक्ष प्रबंधन की लापरवाहियों का भांडा न फूट जाए।
0 सैकड़ों बार वार्ता और फिर आश्वासन का दिखावा, समाधान नहीं
गेवरा व कुसमुण्डा खदानों द्वारा पूर्व में कोयला उत्खनन कार्य हेतु खदान का विस्तार किए जाने के लिए हजारों एकड़ भूमि का अधिग्रहण बहुत पहले ही किया गया था और अधिग्रहित किए गए क्षेत्र में प्रबंधन द्वारा सफलतापूर्वक कोयले का उत्खनन कार्य भी किया जा रहा है। पूर्व में अधिग्रहित क्षेत्र के सैकड़ों मूल कृषक व भू-स्वामी परिवार ऐसे हैं जिनको आज तक मुआवजा, व्यवस्थापन व रोजगार की बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखा गया है। ठगा हुआ सा महसूस करने वाले अपनी बेबस और लाचार स्थिति से प्रबंधन को अवगत कराने हेतु ऐसे सैकड़ों परिवारों के लोग वर्षों से आए दिन धरना प्रदर्शन व चक्काजाम अथवा खदान बंदी जैसे आंदोलन करने के लिए मजबूर होते हैं। उनके आंदोलनों की वजह से कोयला उत्पादन व लदान प्रभावित होने की स्थिति में एस.ई.सी.एल. प्रबंधन द्वारा जिला प्रशासन के सहयोग से त्रिपक्षीय वार्ता आयोजित की जाती है और हमेशा की तरह ही एक बार फिर उन्हें आश्वासन देकर आंदोलन को समाप्त करवा दिया जाता है। यह प्रक्रिया एक बार नहीं सैकड़ों बार दुहराई जा चुकी है, लेकिन वास्तव में ऐसा प्रतीत होता है कि प्रबंधन ऐसी समस्याओं का समाधान करना ही नहीं चाहती। आश्चर्य तो इस बात का भी होता है कि इस तरह की खबरें कोयला मंत्रालय तक पहुंचती क्यों नहीं है और यदि ऐसी खबरें कोयला मंत्रालय तक पहुंच रहीं हैं तो फिर कहना शायद उचित होगा कि कोयला मंत्रालय स्वयं ही समस्याओं के समाधान हेतु गंभीर नहीं है।
0 गैर जिम्मेदाराना कार्यशैली से अनेक विसंगतियों का खामियाजा भुगत रहे भूविस्थापित
जयसिंह अग्रवाल ने कोरबा जिला में संचालित विभन्न कोयला खदानों में व्याप्त विसंगतियों की तरफ कोयला मंत्री का ध्यान आकृष्ट करते हुए लिखा है कि गेवरा, दीपका, मानिकपुर कोरबा, कुसमुण्डा अथवा अन्य खदानों के लिए अधिग्रहीत की गई भूमि के मूल किसानों व भू-स्वामियों में से जिन परिवारों को विस्थापित होना पड़ा है, आज तक उन्हें नियमानुसार व्यवस्थापन जैसे उचित मुआवजा, बसाहट हेतु बुनियादी सुविधाएं यथा सड़क, पानी, बिजली, चिकित्सा और बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल आदि के साथ ही योग्य युवाओं को सहयोगी कम्पनियों के जरिए प्राथमिकता के आधार पर यथा योग्य रोजगार उपलब्ध करवाया जाय ताकि उन परिवारों को किसी प्रकार के आंदोलन का सहारा न लेना पड़े। वास्तव में पीड़ित परिवार आंदोलन करने मजबूर होते हैं और प्रबंधन से वे कोई भीख नहीं मांगते हैं अपितु अपने हक की मांग करते हैं जिनकी जमीन अधिग्रहित कर प्रबंधन कोयला उत्खनन कर लक्ष्य हासिल करता है उनकी समस्याओं का समाधान भी प्रबंधन को ही करना होगा। प्रबंधन की गैर जिम्मेदाराना कार्यशैली की वजह से ही भू-विस्थापित परिवारों को अनेक विसंगतियों का खामियाजा भुगतना पड़ता है।
जयसिंह अग्रवाल ने पत्र में कोयला मंत्री से आग्रह किया है कि वे व्यक्तिगत रूचि लेकर मानवीय संवेदना के तहत एक निर्धारित समय सीमा में विस्थापित हुए परिवारों की समस्याओं का समाधान करने हेतु संबंधित अधिकारियों को निर्देशित करें। पत्र में आगे यह भी लिखा गया है कि गेवरा, मानिकपुर कोरबा, कुसमुण्डा अथवा दीपका सहित कोरबा जिले की कोयला खदानों में विस्तार कार्यक्रम के तहत अधिग्रहित की जाने वाली भूमि से प्रभावित होने वाले परिवारों को नियमानुसार समुचित व्यवस्थापन चरणबद्ध तरीके से यदि पहले ही कर दिया जाता है तो अंचल में एक सौहार्दपूर्ण औद्योगिक वातावरण बना रहेगा और भविष्य में पीड़ित परिवारों को किसी आंदोलन हेतु विवश नहीं होना पड़ेगा। खदान कर्मियों को प्रबंधन द्वारा बुनियादी सुविधाएं भी प्राथमिकता के आधार पर उपलब्ध कराए जाने हेतु निर्देशित किए जाने का भी आग्रह किया गया है। चूंकि कोयला मंत्रालय को देश भर में संचालित कोयला खदानों के जरिए प्राप्त होने वाले कुल राजस्व में से सर्वाधिक राजस्व कोरबा जिला से ही प्राप्त होता है, अतएव एसईसीएल के पास धन की समस्या होने का प्रश्न ही नहीं उठता।