0 मदद की बजाय मौत बेच रहे सौदागर, जनप्रतिनिधियों की भूमिका भी उदासीनता वाली
कोरबा (सत्या पाल)। बचपन और युवा अवस्था जो सपनों को साकार करने के लिए होती है, आज तेजी से सामाजिक बुराई बने नशे के अंधेरे में गुम हो रही है। समय रहते इस पर कड़ा नियंत्रण के अभाव में नशे की यह लहर समाज को खोखला करने अग्रसर है। जरूरत है प्रशासन, पुलिस,समाज, परिवार, जनप्रतिनिधियों और स्कूल प्रबंधनों के एकजुट होकर इस लड़ाई को लड़ने की, ताकि आने वाली पीढ़ी एक स्वस्थ और सुरक्षित जीवन जी सके।
नशे की लत अब सिर्फ गांजा, शराब, सिगरेट और गुटखा तक सीमित नहीं रही। बाल और युवा पीढ़ी अब ऐसे खतरनाक नशों की चपेट में है, जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। मधु-मुनक्का, बोनफिक्स, सुलेशन, इंजेक्शन और टेबलेट सहित जीवनरक्षक सीरप जैसे धीमे जहरीले पदार्थ उनकी जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं। हालात इतने गंभीर हो चुके हैं कि छोटी बच्चियां भी सुलेशन का नशा करने लगी हैं और कई युवतियां तो कुछ नामचीन अड्डों की आड़ में सिगरेट का कश लेती हैं। अनेक बच्चे और किशोर नशे की हालत में चोरी, लूट, मारपीट और अन्य अपराधों में लिप्त हो रहे हैं। इस अंधेरे कारोबार में कबाड़ी, नशे के सौदागर और अवैध कारोबारी जमकर फायदा उठा रहे हैं, जबकि समाज, प्रशासन और परिवार बेबस नजर आ रहे हैं।
0 कैसे बढ़ रहा है यह धीमा जहर?
- आसानी से उपलब्धता: पारंपरिक नशों की तुलना में ये नए नशे बेहद सस्ते और आसानी से मिलने वाले हैं। बोनफिक्स (गोंद), सुलेशन (स्निफिंग ड्रग्स) और सिरप जैसी चीजें खुलेआम दुकानों पर मिलती हैं। नशा के रूप में इस्तेमाल होने वाली टेबलेट, कैप्सूल, इंजेक्शन के अलावा दिमागी तौर पर असर डाल कर मानसिक संतुलन बिगाड़ने वाला नशा मधु मुनक्का की गोली, गांजा की पुड़िया आसानी से मिल जाती हैं। एक रैकेट इसमें काम कर रहा है जिसका नेटवर्क या तो पकड़ में नहीं आ रहा, या पकड़ने में रुचि नहीं दिखाई जा रही है। ऐसे बच्चों की धर पकड़ भी अब नहीं होती।
- बच्चों की मासूमियत का फायदा: छोटे बच्चे जो स्कूल जाने की उम्र में होते हैं, उन्हें बड़े नशेड़ी बहला-फुसलाकर इस दलदल में धकेल देते हैं। ऐसा नजारा शहर के कई स्लम इलाकों के साथ-साथ प्रमुख रिहायशी इलाकों में सहज ही देखने को मिल जाता है। बच्चे भी सिगरेट, बीड़ी का कश खींचते और गुटखा का नशा खुलेआम करते हैं। दुकानदार भी इन्हें सामान बेचते हैं, नाबालिगों को नशा का सामान नहीं बेचने का बोर्ड तो खानापूर्ति के लिए लगाया जाता है। कोटपा एक्ट की कार्रवाई महज खानापूर्ति और रिकार्ड मेन्टेन करने की औपचारिकता भर साबित हो रही है।
- अपराध की ओर बढ़ते कदम: जब बच्चे और किशोर नशे के आदी हो जाते हैं, तो इसे खरीदने के लिए चोरी, झपटमारी और अन्य अपराध करने लगते हैं। हाल के मामलों में देखा गया है कि नशे की हालत में मंदिरों से चढ़ावा चुराना, दुकानों में सेंध लगाना, मोबाइल झपटना, यहां तक कि महिलाओं के गहने और पर्स छीनने जैसी घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं।
- ऐसे कई मामले पुलिस पकड़ चुकी है जिनमें विधि के विरुद्ध संघर्षरत अपचारी बालकों के द्वारा अपने शौक, लत की पूर्ति के लिए किसी न किसी के कहने पर अपराध करना स्वीकारा है। इनको कुछ रुपये देकर मजदूरी की तरह अपराध के दलदल में धकेला जाता है, जिसमें अवैध कबाड़ी अहम भूमिका निभा रहे हैं। उनके नशा की लत के अलावा कई के पारिवारिक हालातों, आर्थिक तंगहाली का भी लाभ उठाने से नहीं चूकते।
- अवैध कारोबारियों का गिरोह: कबाड़ी और नशे के सौदागर इन बच्चों से चोरी का सामान खरीदते हैं, जिससे अपराध की एक पूरी चेन बन जाती है। अनेक मामले उदाहरण स्वरूप सामने आए हैं जब पकड़े जाने पर इसका खुलासा हुआ है। ताजातरीन मामला तो नगर निगम का उजड़ता सौंदर्यीकरण है। सीएसईबी चौक से शारदा विहार तिराहा तक लगाए गए रेलिंग के ऊपर का नुकीला वजनी सिरा तोड़कर इलाके के अवैध कबाड़ियों के पास ही बेचा गया, इस हरकत को सिर्फ अपनी नशे की लत को चंद रुपये से पूरा करने के लिए अंजाम दिया जा रहा है। अन्य छोटी-छोटी चोरियां गुमनामी में हैं। कबाड़ी और अवैध नशा बेचने वाले कारोबारी इस स्थिति का पूरा फायदा उठा रहे हैं। चोरी का माल ये कबाड़ी कम कीमत पर खरीद लेते हैं और नशे के बदले बच्चों को नकद या सामान दे देते हैं। इसके अलावा, कई जगहों पर खुद नशे के सौदागर इन्हीं बच्चों से नशे की छोटी-छोटी खेप बिकवाने लगते हैं, जिससे ये मासूम खुद अपराधियों के चंगुल में फंस जाते हैं।
0 क्या हो सकता है समाधान?
- सख्त कानून और पुलिस की पैनी नजर: अवैध नशा बेचने वालों और कबाड़ियों पर शिकंजा कसना जरूरी है। पुलिस को इस तरह के अपराधों पर विशेष अभियान चलाकर कार्रवाई करनी होगी। यह भी देखना जरूरी है कि इनके नेटवर्क को आखिर संरक्षण कौन दे रहा है, और उस पर भी कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।
- परिवार की जागरूकता: माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों की हरकतों पर ध्यान दें और अगर कोई असामान्य बदलाव दिखे, तो समय रहते उचित कदम उठाएं।
- स्कूलों और सामाजिक संगठनों की भूमिका: स्कूलों और एनजीओ को नशे के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने चाहिए और बच्चों को इसके दुष्परिणाम बताने चाहिए। व्यवसायियों को भी चाहिये कि वे नशा में प्रयुक्त होने वाले कोई भी सामान नाबालिगों को बिल्कुल न बेचें। निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की कोई भूमिका इस मामले में नजर नहीं आती, कभी-कभार के आयोजनों में वे अतिथि की भूमिका में जो कुछ सन्देश दे दें, वही बस होता है किंतु अपने वार्ड, अपने निवास क्षेत्र में ऐसी अवांछित गतिविधियों की रोकथाम के लिए कोई भूमिका निभाते नजर नहीं आते और न ही प्रशासन से जानने के इच्छुक दिखते हैं, जो बड़ी विडम्बना है।
- नशा मुक्ति केंद्र और पुनर्वास: सरकार को नशे की चपेट में आए बच्चों और युवाओं के लिए खास पुनर्वास केंद्र खोलने चाहिए ताकि वे इस दलदल से बाहर निकल सकें। इसके लिए भारी भरकम रकम खर्च की जाती है लेकिन नतीजा शून्य है। कोरबा जिले में भी नशामुक्ति पुनर्वास केंद्र के नाम पर बड़ी राशि खर्च हुई है लेकिन धरातल पर कुछ खास देखने को नहीं मिल रहा, बन्दरबांट की प्रबल आशंका है, इसके प्राप्ति और व्यय मद की जांच होनी चाहिए।