0 एक दिन पहले महिलाओं ने किया था अर्धनग्न प्रदर्शन
कोरबा। भूविस्थापित परिवारों में SECL प्रबंधन के खिलाफ नाराजगी बढ़ी हुई है। कुसमुंडा परियोजना में कालांतर में दी गई फर्जी नौकरियों के कारण अनेक भूविस्थापित परिवार के लोग नौकरी के लिए भटक रहे हैं। विस्थापितों के खातों में दूसरों को फर्जी नौकरी देने का आरोप लगाते हुए भूविस्थापित रोजगार एकता महिला किसान के बैनर तले महिलाओं के द्वारा शुक्रवार को जीएम कार्यालय के भीतर अर्धनग्न होकर प्रदर्शन किया गया। इन्होंने अधिकारी को कहा कि आप चूड़ी पहन लो, हम यहां से चले जाएंगे।
इस प्रदर्शन के बाद आज कुसमुण्डा GM सचिन पाटिल और सीएमडी का पुतला कार्यालय गेट पर फूंका गया। पुतला दहन से पहले भूविस्थापितों ने साड़ी पहने पुतले को लेकर जुलूस निकाला।
जीएम व सीएमडी के पुतले के साथ दहन स्थल पर पहुंचे और नारेबाजी करते हुए एक भूविस्थापित ने पुतले पर थूका और इसके बाद मुर्दाबाद के नारे लगाते हुए उसे फूंक दिया। इनके तस्वीर को पैर कुचला भी गया। इस दौरान भूविस्थापितों के चेहरे पर नाराजगी झलक रही थी और प्रबंधन के रवैया से वह काफी खफा नजर भी आए।
0 सहमति और शासन के सत्यापन बाद नौकरी दी गई:SECL
दूसरी तरफ शुक्रवार को प्रदर्शन के दौरान एसईसीएल के अधिकारी यह सफाई देते रहे कि जिनकी जमीन ली गई है उनके द्वारा दिए सहमति के आधार पर एवं राज्य शासन की इकाईयों के द्वारा किए गए सत्यापन के उपरांत ही नौकरी दी गई है तो इसमें SECL की गलती कहां? इस पूरे मामले में तत्कालीन अधिकारी अनुपम दास का नाम काफी सुर्खियों में रहा जिन पर आरोप लगा है कि उन्होंने अनेक लोगों को फर्जी नौकरियां लगवाई।
0 उस दौर में खूब चला खेला
जानकारों के हवाले से बताते चलें कि वर्ष 1978 का वह दौर था जब अविभाजित मध्य प्रदेश में भी पुनर्वास नीति लागू नहीं हुई थी। उस समय कलेक्टर भू अर्जन समिति के अध्यक्ष हुआ करते थे और उनके अध्यक्षता में गठित कमेटी में शामिल सदस्यों के साथ-साथ आसपास के विधायकों के द्वारा बनाई गई नीति के अनुसार ही कार्य होता था। लगभग तीन एकड़ भूमि पर एक नौकरी का प्रावधान रखा गया। इसी तरह यह प्रावधान भी था कि यदि किसी की छोटी जमीन भी है तो उसे भी नौकरी दी जाएगी ताकि मैनपावर की पूर्ति की जा सके। कोयला खदानों के संचालन के लिए मानव संसाधन की आवश्यकता थी। नौकरियां शुरुआती दौर में लग रही थी और उस समय के राजस्व विभाग से जुड़े अधिकारियों, आर आई पटवारी ने बड़ी चालाकी से जमकर खेल खेला। कुछ नाम आज भी चर्चित हैं जिन्होंने जमीनों में जमकर हेर फेर किया और टुकड़ों में जमीन की बिक्री करवा कर रिकॉर्ड में दिखाकर नौकरियों को बेचा। बड़ी जमीनों को छोटे-छोटे टुकड़े करवा कर उन टुकड़ों पर नौकरियां दिलवाई गई और यह पूरा फर्जीवाड़ा हुआ। इसके अलावा कई ऐसे भी लोग थे जो उस समय नौकरी नहीं करना चाहते थे और उनके घर में कोई नौकरी लायक आश्रित भी नहीं था, किंतु चालाक लोगों ने इनसे समझौता करा कर कोई न कोई नाता जोड़कर, सहमति लेकर नौकरी हासिल कर ली। अब ऐसे ही अधिकांश जमीन मालिकों के परिवार जिनके खाते में नौकरी उनके आश्रितों को नहीं मिली है, वह अपनी नौकरी मांग रहे हैं। सारा कुछ तत्कालीन चंद राजस्व अधिकारियों-कर्मियों और एसईसीएल के चंद अधिकारियों की सांठगांठ से हुआ जिसका खामियाजा आज तक भूविस्थापित भुगतते आ रहे हैं और प्रबंधन टारगेट में रहा है। आज भी प्रभावितों को रोजगार,मुआवजा, बसाहट, पुनर्वास के मामले में कहीं ना कहीं प्रबंधन की नीतियां और कार्यशैली सवालों व नाराजगी के घेरे में है।