0 युक्तियुक्तकरण से जुड़ा है मामला, क्या मोहरा बन गया विनोद साण्डे
0 अधिकारियों की भूमिका पूर्ण संदेह के दायरे में, साण्डे मध्यस्थ की भूमिका निभाते पकड़ाया
कोरबा। विभिन्न मामलों में कोरबा जिले का शिक्षा विभाग किसी न किसी तरह से सुर्खियों में रहता आया है। कभी अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम करने की बात गूंजती है,और कार्रवाई रद्दी की टोकरी में चली जाती है, तो कभी हस्ताक्षर करने के नाम पर 500 रुपये लेने का मुद्दा शिक्षकों के बीच छाया रहता है। शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी होती जा रही है और शिक्षा से जुड़े इस विभाग में पढ़ाई-लिखाई, अध्ययन-अध्यापन,परिणाम सुधार पर कम, पैसा किस तरह से आए इस पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। पदोन्नति और पदांकन के मामले में भी कमीशन/रिश्वत की बातें खूब चर्चा में रही और शिकवा-शिकायतों का दौर भी चला। युक्तियुक्तकरण में भी काफी घालमेल हुआ जो उजागर भी किया गया। वर्तमान में युक्तियुक्तकरण के बहाने ही सही,तबादला उद्योग इस विभाग में हावी है। इस उद्योग का भांडा एक शिक्षक की वजह से फूटा जिसने अपनी निकटता जिला शिक्षा अधिकारी और ब्लॉक शिक्षा अधिकारी से होना बता कर महिला शिक्षिका का तबादला दूर स्कूल की बजाय नजदीक के स्कूल में कराने के एवज में 2 लाख रुपये की रिश्वत मांगी। रिश्वत लेने का मामला अपने आप में इस बात को प्रमाणित करने के लिए काफी है कि शिक्षा विभाग में रिश्वतखोरी का खेल तो चल रहा है, यह बात अलग है कि इसे एसीबी ने पकड़ा है,पर जाल में अधिकारविहीन छोटी मछली फंस गई।
0 यह है पूरा मामला

9 जुलाई 2025 को प्राथमिक शाला केसला के प्रधान पाठक रामायण पटेल द्वारा एसीबी इकाई बिलासपुर में शिकायत की गई थी कि उसकी पत्नी उसी के स्कूल में शिक्षक पदस्थ है। आरोपी विनोद कुमार सांडे जो माध्यमिक शाला बेला में शिक्षक है, के द्वारा उसकी पत्नी का ट्रांसफर अन्य दूर के स्कूल में होने की संभावना बताकर अपना परिचय डीईओ और बीईओ से होना बताकर इससे बचने और नजदीक के स्कूल ओमपुर में करा देने के एवज में 2 लाख रुपए की मांग की जा रही है। वह रिश्वत देना नहीं बल्कि उसे रिश्वत लेते हुए पकड़वाना चाहता है। शिकायत का सत्यापन बाद ट्रैप की योजना बनाकर विनोद को 2 लाख रुपए प्रार्थी के कोरबा स्थित निवास में उससे लेने के दौरान 17 जुलाई 2025 को पकड़ा गया। आरोपी से रिश्वत की रकम जप्त कर एसीबी के द्वारा उसके विरुद्ध धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत कार्यवाही की गई है।
0 शिक्षिका सहित 7 की आज होनी थी काउंसिलिंग
रिश्वत कांड के मामले में जब सत्यसंवाद ने अपने सूत्रों के माध्यम से जानकारी निकली तो ज्ञात हुआ कि युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया से छूटे हुए सात लोगों के काउंसलिंग की सूचना जिला शिक्षा अधिकारी के द्वारा कल ही जारी की गई और इन सभी सात लोगों का आज 17 जुलाई को काउंसलिंग होना था। बता दें कि, अतिशेष शिक्षकों की सूची में उक्त शिक्षिका का नाम पूर्व में था तो उन्होंने कलेक्टर को आवेदन देकर बीमारी के कारण रुकवा लिया लेकिन दुबारा नाम लाया गया तो कोर्ट चली गईं। वहां से न्याय मिला तो पुनः पूर्ववत बेला में पदस्थ हुईं। अब सात लोगों में इनका नाम ऊपर के क्रम में शामिल है,जिसे काउंसलिंग के बाद पदस्थापना दी जानी थी। काउंसलिंग समिति के अध्यक्ष कलेक्टर और सचिव जिला शिक्षा अधिकारी होते हैं। विवाद की स्थिति में ऐहतियात के तौर पर काउंसलिंग में कलेक्टर बैठते हैं अन्यथा सचिव ही कमेटी सदस्यों के साथ पूरी सूची फाइनल कर कलेक्टर का हस्ताक्षर करा लेते हैं और भरोसे-विश्वास में सारा काम कई बार हो जाता है। शिक्षक विनोद साण्डे बेला के स्कूल में पदस्थ है, वह रजगामार संकुल का समन्वयक भी है और ओमपुर का स्कूल रजगामार संकुल के अंतर्गत आता है। ऐसे में इतना तो सम्भव है कि विनोद साण्डे ने अपने संकुल के ओमपुर स्कूल में पदस्थापना कराने का दम भरा हो और 2 लाख की मांग रखी हो, लेकिन जानकार बताते हैं कि संकुल समन्वय को किसी तरह का अधिकार ही नहीं है कि वह किसी का तबादला कर या करा सके और ना तो वह काउंसलिंग समिति में शामिल है, लेकिन दूसरी तरफ उसे इस बात की पूरी जानकारी दी गई थी कि उक्त शिक्षिका का तबादला दूरस्थ स्कूल में होने वाला है। अब आरोपी साण्डे नजदीक तबादला कराने के मामले में निःसन्देह मोहरा के तौर पर इस्तेमाल हुआ। चूंकि बेला संकुल और रजगामार संकुल कोरबा ब्लॉक शिक्षा अधिकारी के अधिकार क्षेत्र में आते हैं और उन्हीं के अधीन संकुल समन्वयक भी काम करता है बीईओ के मार्फत फाईल जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय जाकर हस्ताक्षरित होती है और फिर नई पदस्थापना पर शिक्षक को जाना होता है। यह भी है कि अधिकांश को दूर पूर्व युक्तियुक्तकरण में काफी दूर भेजा गया है और कुछ लोग नजदीक पदस्थ होने के लिए एप्रोच लगाते पर सीधे डीईओ से नहीं,संकुल समन्वयक माध्यम होते हैं।
0 सक्षम अधिकारियों की भूमिका भी जांची जाय
इस तरह से रिश्वत के तार न सिर्फ सक्षम अधिकारियों से पूरी तरह जुड़े हुए हैं बल्कि इसमें डीईओ तथा बीईओ या अन्य की भूमिका भी पूर्ण रूप से संदेह के दायरे में आती नजर आ रही है। अब यह अलग बात है कि एंटी करप्शन ब्यूरो इस पूरे मामले में इन दोनों की भूमिका या तबादला उद्योग चलाने वालों को किस तरह से बेनकाब कर पाएगा…? आरोपी विनोद साण्डे को बेहतर जानने वाले बताते हैं कि वह इस तरह की प्रवृत्ति का व्यक्ति नहीं है लेकिन वह अपने शीर्ष अधिकारियों के लिए लेन-देन की बात करने का एक माध्यम जरूर हो सकता है। शिक्षा विभाग से जुड़े लोग व शिक्षक भी चाहते हैं कि सारा कुछ आईने की तरह साफ होना चाहिए और जांच के दायरे में जो भी अधिकारी-कर्मचारी आए, उस पर सख्त से सख्त कार्रवाई करने के साथ आय और सम्पत्ति की जांच कराई जानी चाहिए।