SECLमुआवजा घोटाला: एक और स्क्रिप्ट लिखकर तैयारी चूना लगाने की
0 भाई, बहू, बहन और सास के नाम न जमीन न मकान,फिर भी बनाया मेजरमेंट…!
कोरबा। एसईसीएल की दीपका परियोजना खदान से प्रभावित ग्राम मलगांव और सुआभोड़ी में मुआवजा के नाम पर जमकर घोटाला हुआ है। अभी तो 18 करोड़ का मुआवजा घोटाला उजागर हुआ है, जिसकी जांच शुरू हो चुकी है। सीबीआई अगर तह तक जाकर जांच करे तो इस पूरे मामले में न सिर्फ श्यामू जायसवाल बल्कि उसके इशारे पर काम करने वाले एसईसीएल और राजस्व विभाग के अधिकारी एवं बाबू भी लपेटे में आएंगे। इन सभी ने मिलकर SECL से अधिक मुआवजा पाने के लालच में ऐसा जाल बुना है जिसमें उलझ कर और सिर्फ कागजों के बूते सरकार को करोड़ों रुपए की चपत लगाई गई है। यह एक मामला उजागर होने से जहां खलबली मची हुई है तो वहीं दूसरी तरफ इस घोटाले को अंजाम देने के साथ-साथ एक और स्क्रिप्ट लिखकर तैयार रख ली गई है। इसमें शासकीय कर्मी मनोज गोभिल के परिजन से लेकर श्रमिक नेता श्यामू जायसवाल की रिश्तेदार के नाम पर और एक कोटवार के नाम पर भी जमीन व मकान होना बताकर करोड़ों रुपए का मुआवजा हड़पने की तैयारी है। यहां तक कि इनका मेजरमेंट बुक भी तैयार हो चुका है।
ग्राम मलगांव में फर्जी मकान नापी कर करोड़ों रूपये की मुआवजा राशि हड़पने की जांच किया जाना जरूरी हो चला है। ग्राम मलगांव तहसील दीपका के मकान एवं परिसम्पत्तियों का लगभग 2 वर्ष पूर्व नापी सर्वे किया गया था जिसमें किन्हीं कारण से कुछ भू-स्वामी मकान मालिकों का नापी और सर्वे नहीं हो पाया था। राज्य शासन एवं एसईसीएल की संयुक्त नई टीम के द्वारा नवम्बर 2023 में इन छूटे हुए भू-स्वामी/ मकान मालिकों के मकान/संपत्ति का सर्वे-नापी किया गया जिसमें कटघोरा की तत्कालीन महिला एसडीएम के द्वारा फर्जी मकान नापी कराया गया तथा भू-अभिलेख कटघोरा में पदस्थ बाबू मनोज कुमार गोभिल के द्वारा अपने रिस्तेदारों के नाम से करोड़ों रूपये का मुआवजा बनाया गया। इसी तरह हल्का पटवारी विकास जायसवाल के द्वारा दीपका कोटवार बरातू राम पिता मुखीराम के नाम से फर्जी मुआवजा पत्रक तैयार किया गया है।
0 इनकी न जमीन न मकान, कागज में सब फर्जी
सत्यसंवाद को मिली जानकारी के मुताबिक घोटाले के सेकेंड एपिसोड के लिए जो तैयारी की गई है, उसकी स्क्रिप्ट में
@ बिमला देवी पति गौरी शंकर जायसवाल खसरा नंबर 558/1 शासकीय भूमि
@ नीलम पति रविन्द्र खसरा नंबर 558/1 शासकीय भूमि
@ नीलू पति प्रमोद कुमार,खसरा नंबर 558/1 शासकीय भूमि
@ प्रमोद कुमार पिता खिलावन लाल, खसरा नम्बर 542/3 भू स्वामी सुमित्रा बाई पिता मालिकराम
@ बरातू राम पिता मुखीराम (दीपका कोटवार) खसरा नंबर 558/1 शासकीय भूमि शामिल हैं। मजे की बात यह है कि इन सभी के नाम पर ना तो यहां कोई भी जमीन रही और ना ही वे शासकीय भूमि पर कभी काबिज रहे हैं और ना ही किसी तरह का मकान अथवा कोई संपत्ति का निर्माण उक्त कथित भूमि पर निर्मित रहा है। इस गांव से इनका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रहा। सिर्फ और सिर्फ मुआवजा प्रकरण बनाने के लिए कागज में पक्का फर्जीवाड़ा किया गया है। उक्त व्यक्तियों के नाम पर बनी मुआवजा राशि की जांच कर दोषियों पर कड़ी आपराधिक कार्यवाही की आवश्यकता है।
0 एसडीएम से लेकर जीएम, तहसीलदार भी दायरे में
मुआवजा घोटाला उजागर होने के बाद अब यह सब जिस अधिकारी के कार्यकाल में हुआ है, वह सभी जांच के दायरे में आ गए हैं। तत्कालीन एसडीएम शिव बनर्जी पदस्थ हुए लेकिन इनके बाद कटघोरा की तत्कालीन एसडीएम ऋचा सिंह के खिलाफ अनेक शिकायतें उनके कार्यकाल के दौरान मुआवजा प्रकरण बनाने को लेकर होती रही। तहसीलदार किशोर शर्मा, पटवारी विकास जायसवाल, बाबू मनोज गोभिल के साथ-साथ SECL जीएम माइनिंग मनोज कुमार सिंह, नोडल अधिकारी भू राजस्व मिथिलेश मधुकर की भूमिका को 18 करोड़ के घोटाला और सेकेंड स्क्रिप्ट में नकारा नहीं जा सकता। सत्यसंवाद को सूत्र बताते हैं कि जब उच्च निर्देश पर दीपका के प्रगति हाउस में एक माह का कैम्प लगाकर भू विस्थापितों के मुआवजा प्रकरण का निराकरण करने की कार्रवाई प्रारंभ हुई तब उस दौरान ही यह सारा खेल रचा गया जिसमें कुल वास्तविक किसानों की संख्या लगभग 300 से बढ़कर 1628 तक पहुंच गई। इन्हीं 1628 लोगों में से 26 ऐसे लोग हैं जिनके नाम पर करोड़ों का मुआवजा बना है। बता दें कि भूविस्थापित पूर्व एसडीएम शिव बनर्जी के द्वारा बनाए गए करीब 668 मुआवजा प्रकरण को लेकर काफी संतुष्ट थे लेकिन सफेदपोश लोगों को यह संतोषजनक काम रास नहीं आया और शिव बनर्जी का तबादला करा दिया गया। इसके बाद ऋचा सिंह ने कमान संभाली तो सारा खेल गड़बड़ होने लगा। सूत्र तो यह भी दावा कर रहे हैं कि पूर्व में बेहतरीन मुआवजा पत्रक जमीनों और संपत्तियों की सही नापी-सर्वे करके तैयार किया गया था, उसे बाद में SECL के चंद लोगों द्वारा गायब करके जला दिया गया और अपने लोगों के नाम से करोड़ों का मुआवजा बनाने के लिए दूसरा पत्रक एक माह के शिविर के दौरान तैयार कर इसी आधार पर घोटाला किया गया। भूविस्थापितों के बीच से निकली इन सभी चर्चाओं की सच्चाई तो ईमानदाराना और निडर नीर-क्षीर विवेचना से ही उजागर होगी।