कोरबा। कोरबा जिले में संचालित एसईसीएल की कुसमुंडा परियोजना खदान में कार्यरत निजी ठेका कंपनी एमपीटी (मां पार्वती ट्रांसपोर्ट) के मैनेजर से लेकर कर्मचारियों पर अपराध पंजीबद्ध कर उनकी तलाश की जा रही है। कंपनी में रोजगार की मांग को लेकर भू विस्थापितों द्वारा किए जा रहे धरना प्रदर्शन के दौरान मैनेजर सैलू सिंह के साथ मारपीट के बाद मामला कुसमुंडा थाना पहुंचा था। दो दिन पहले कुसमुंडा थाना में थानेदार के सामने ही भू विस्थापित और एमपीटी के कर्मचारियों के बीच विवाद बढ़ा और अभद्रता होने के साथ ही मारपीट हो गई। थानेदार के सामने मारपीट के मामले में पहले तो पुलिस ने धारा 151 के तहत प्रतिबंधात्मक कार्रवाई की और इसके बाद गैर जमानती धाराओं 294, 323, 506, 353, 147, 149, 186 भादवि के तहत कंपनी के मुख्य कर्ताधर्ता उमेंद्र सिंह तोमर, मैनेजर सैलू सिंह, तेज प्रताप, कमलेश, अभिषेक आनंद शर्मा व अन्य के विरुद्ध अपराध दर्ज किया गया है। भूविस्थापितों के साथ एमपीटी कंपनी के मध्य चल आ रहे गतिरोध के फलस्वरुप कंपनी में जहां कामकाज पूरी तरह से ठप्प रहा वहीं इस पूरे घटनाक्रम को लेकर पुलिस से लेकर जिला प्रशासन और एसईसीएल में भी सरगर्मी बनी रही। सूत्र बताते हैं कि इन आरोपियों को धारा 151 में जमानत देने वाले दीपका तहसील के तहसीलदार कार्यपालिक दंडाधिकारी विनय कुमार देवांगन को भी तत्काल प्रभाव से हटाया गया है। बताया जा रहा है कि उक्त आरोपियों को जमानत देने के लिए राजनीतिक दबाव भी आया था जिसके बाद जमानत दी गई लेकिन प्रशासनिक तौर पर मिले निर्देश के बाद भी जमानत दे देने से इस गंभीर मामले में मोड़ आ गया और इसे गंभीरता से लेते हुए प्रशासनिक कार्रवाई भी की गई है। यह पूरा मामला तीन दिन से एसईसीएल कंपनी के गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है। प्रबंधन की कार्यशैली और अधिकारियों के रवैया को लेकर भी भूविस्थापितों में नाराजगी कायम है। एमपीटी कंपनी के लोग भी कामकाज बाधित होने से परेशान हैं और कंपनी को भी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है। ऐसे में प्रबंधन को मजबूत हस्तक्षेप करने की जरूरत है ताकि समाधान हो सके और दोनों पक्षों में चल रहा गतिरोध खत्म होकर कामकाज सामान्य तरीके से चल सके।
0 कुछ लोग ब्लैकमेलिंग कर रहे
एमपीटी कंपनी की ओर से बताया गया कि भूविस्थापितों के नाम पर कुछ लोगों के द्वारा भयादोहन/ब्लैकमेलिंग करने का भी काम किया जा रहा है। इनके द्वारा साफ तौर पर कहा जाता है कि यदि यहां काम करना है तो हमसे मिलकर चलना होगा और जो मांग है उसे पूरा करना होगा वरना काम नहीं करने दिया जाएगा। ना सिर्फ एमपीटी बल्कि दूसरे निजी कंपनी प्रबंधन भी इस तरह के रवैये से परेशान हैं लेकिन ले – दे कर काम चला रहे हैं। कुछ इस तरह की मानसिकता रखने वालों के कारण अन्य भू विस्थापित और उनसे जुड़े संगठनों की छवि खराब हो रही है।