0 सराईपाली ही नहीं, सभी कोयला खदानों में यही हाल
0 चुनिंदा रोड सेल ठेकदारों को संरक्षण देने वाले अधिकारियों को पाली से सबक लेना जरूरी
0 खदान क्षेत्र में अनाधिकृत लोगों का प्रवेश प्रारम्भ से ही रोकना जरूरी, बाद में बढ़ता है मनोबल
कोरबा। एसईसीएल की कोरबा जिले में संचालित कोरबा क्षेत्र की सरायपाली खदान में शुक्रवार की रात जो घटनाक्रम घटित हुआ, वह कोयला अधिकारियों के लिए बहुत बड़ा सबक है। साथ ही साथ यह समझने के लिए भी काफी है कि वे अपनी कमीशनखोरी की आदतों से बाज आएं। इनकी कमीशनखोरी और चुनिंदा लोगों से खास सेवा कराते हुए उन्हें खदान में संरक्षण देने की आदत दूसरे खदानों में भी गैंगवार करा सकती है। इस दिशा में शासन से लेकर जिला और पुलिस प्रशासन को भी आंख-कान खुले रखकर चौकन्ना रहना होगा।
सरायपाली एकमात्र ऐसी खदान नहीं है जहां से कोयला की चोरी कराई जाती रही हो, अनाधिकृत वाहनों का प्रवेश कराया जाता रहा हो और कमीशन की जमकर बंदरबांट हो रही हो। घटित घटना से 3-4 दिन पहले ही रोहित जायसवाल की वाहन को अनाधिकृत प्रवेश की बात कह कर ब्लैक लिस्ट करने का निर्देश खान प्रबंधक पाणी ने दिया था, इसके बाद शुक्रवार रात खदान की लोडिंग प्वाइंट में वाहन ले जाने को लेकर भड़का विवाद आवेश में जानलेवा हो गया। बात तो यहीं बिगड़ती है कि पैसा लेने के बाद भी रोक-टोक की जाती है, तवज्जो नहीं मिलती है, तो मनमुटाव बढ़ता है। कोई गलत नहीं है कि SECL के अधिकारी की वजह से मामला बिगड़ रहा था।
इस तरह के हालात SECL की कोरबा, मानिकपुर, कुसमुंडा, गेवरा- दीपका खदान में भी बने हुए हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि यहां बात बिगड़ने के बाद उस पर मिट्टी डाल दी जाती है और कुछ दिन खामोश रहने के बाद फिर काम का सिलसिला चल पड़ता है लेकिन पाली में इस व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा ने राजनीतिक संरक्षण कुछ ज्यादा ही मिलने की वजह से रंजिश का रूप ले लिया। कोयला खदान में जब एक ही दल के दो लोगों की राजनीति घुसी तो एक-दूसरे पर हावी होने की लगातार कोशिशों ने रंजिश को जानलेवा घटनाक्रम में तब्दील कर दिया। इस बात में कोई संदेह नहीं कि SECL के महाप्रबंधक, मुख्य महाप्रबंधक, खान प्रबंधक से लेकर लोडिंग साइट पर मौजूद रहने वाले जिम्मेदार अधिकारी-कर्मचारी की सांठगांठ रहती है। राजनीतिक रसूख के बल पर कई अधिकारी-कर्मी वर्षो से परियोजना में जमे रहकर करोड़ों का खेल किये बैठे हैं, फिर चाहे वह कोयला हो या चंद ट्रांसपोर्टरों के वाहनों में डीजल की अफरा-तफरी के जरिए।
कोयला खदान के सूत्र बताते हैं कि जिले के सभी खदानों में रोडसेल का काम करने वाले ट्रांसपोर्टरों से कोयला उठाव के एवज में प्रति टन 10 रुपये का रेट फिक्स कर दिया गया है। कुछ मौकों पर यह कीमत अन्य छोटे कर्मचारी का कमीशन मिलाकर 15 रुपए तक हो जाती है लेकिन 10 रुपए से नीचे रेट कभी नहीं गिरा। कोयला उठाव के लिए DO प्राप्त करने वाले को कोयला उठाव की मात्रा के एवज में प्रति टन 10 रुपए के मान से पूरी रकम एडवांस में जमा कराने के बाद ही ALLOW (अनुमति) आदेश प्राप्त होता है। ALLOW ORDER पर हस्ताक्षर के बाद ही लोडिंग पॉइंट से कोयला उठाव हो सकता है, अन्यथा नहीं।
सूत्र बताते हैं कि खदान क्षेत्र में सुरक्षा के नाम पर जवानों की सिर्फ उपस्थिति दर्ज होती है लेकिन वह भी धीरे-धीरे इसी रंग में रंगने लगे हैं। कोयला खदान क्षेत्र से न सिर्फ ट्रकों में बल्कि बोरियों में भी संगठित तौर पर कोयला चोरी करने का खेल खेला जा रहा है। गरीबी की आड़ में जो लोग खदान क्षेत्र में घुसकर बोरियों में कोयला भरकर निकलते हैं, उनसे भी हर दिन का 100 से 150 रुपए फिक्स रखा गया और चेकिंग पॉइंट पर अथवा खदान के प्रवेश द्वार पर जिस कर्मचारी की ड्यूटी रहती है वह प्रत्येक ऐसे कोयला उठाने वालों से यह रकम प्राप्त करता है। कोयला चोरों का एक संगठित गिरोह हर खदान में काम कर रहा है। यही वजह है कि रेल रैक से भी ओव्हरलोड कोयला भेजने के बाद अनाधिकृत साइडिंग में एडजस्टमेंट में निकले कोयला की वापसी का न कोई हिसाब प्रबन्धन लेता है और न ही ऐसे कोयला की वापसी कराई जाती है।
0 ट्यूनिंग अच्छी हो तो सब नियम ताक पर
कोयला की आपूर्ति में गुणवत्ता का भी खेल जमकर खेला जा रहा है। चहेता ठेकेदार यदि भेंट-चढ़ावा बेहतर ढंग से देता रहे और संबंधित अधिकारियों की खान-पान सहित अन्य तरह की सेवा करे, ट्यूनिंग (तालमेल) अच्छा हो, तो उसे अच्छी क्वालिटी का कोयला बिना किसी रोक-टोक के प्राप्त हो जाता है और बाकी के लिए मिक्स कोयला उपलब्ध रहता है। खदानों में संगठित गिरोह काम कर रहा है। जन बल-धन बल- बाहु बल के साथ-साथ बदलती सत्ता के दौर में उससे नजदीकियां बताकर अपना वर्चस्व कायम रखने की लड़ाई सभी खदानों में चल रही है। कहीं यह लड़ाई उजागर नहीं हो रही तो कहीं सतह पर नजर आ रही है। कुसमुंडा की खदान में पहले भी मारपीट की घटनाएं हो चुकी हैं, दीपका खदान भी इससे अछूता नहीं रहा है, मानिकपुर परियोजना को लेकर श्रमिक संगठनों ने भी संगठित रूप से कराई जा रही कोयला चोरी की शिकायत उच्च स्तर तक की है, लेकिन इन सब मामलों में अधिकारियों ने समय-समय पर पर्दा डाला है। इनके पर्दादारी के कारण ही खदान के लोडिंग क्षेत्र से काले हीरे की चोरी और अवैध रूप से परिवहन बदस्तूर जारी है।
0 नशापान की वस्तुएं भी परिक्षेत्र में बेधड़क बिकती हैं,अनाधिकृत लोगों का आना-जाना
सूत्र के मुताबिक कोयला खदान क्षेत्र में उत्खनन एरिया के बाहर इलाके में नशा पान की चीज बड़ी आसानी से उपलब्ध हो जाती है। कुछ चुनिंदा लोगों के द्वारा शराब आसानी से यहां लाकर बेची जाती है व नशे के अन्य सामान भी उपलब्ध रहते हैं। कोयला उठाव के लिए दो-चार, 10-20 नहीं बल्कि सैकड़ो की संख्या में अनाधिकृत लोगों का बेरोकटोक आना-जाना लगा रहता है। इनमें ऐसे लोग भी रहते हैं जो नशे में रहते हैं या फिर खदान में प्रवेश करने के बाद भी आसानी से नशा प्राप्त कर लेते हैं और नशे की हालात में अक्सर वाद विवाद भी होते रहते हैं। छुटपुट मामले तो थाना तक पहुंचते ही नहीं और ऐसी दर्जनों घटनाएं हैं जो आपस में ही निपटा लिए जाते हैं। इन सब पर कठोरता से विराम लगाने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है।