0 कोरबा में आदिवासी गोंड़ जाति को सामान्य बता कर लाभ पहुंचाने की कोशिश
कोरबा। कोरबा जिले में राजस्व विभाग जमीनों के रिकॉर्ड से खेल रहा है।।शासकीय पट्टे की जमीन हो या फिर जंगल मद की भूमि अथवा स्वयं राजस्व या नजूल की जमीन, उनके रिकॉर्ड से छेड़छाड़ कर दूसरे लोगों को बेजा लाभ पहुंचाने के कई मामले सामने आ चुके हैं। इसी कड़ी में एक और गम्भीर मामला सामने आया है जिसमें निःसंतान आदिवासी घासीराम पिता दादूराम गोड़ की जमीन को उसकी मृत्यु उपरांत सगे भाई के नाम पर ना चढ़ाते हुए मिलते-जुलते नाम के दूसरी जाति के व्यक्ति और उसके लगभग मिलते-जुलते पिता के नाम का सहारा लेकर स्व.घसीराम पिता दयाराम के पुत्र इतवार सिंह और बांकीमोगरा के एक व्यक्ति के द्वारा झोल करते हुए शासकीय पट्टे की जमीन को करोड़ों रुपए में बेचने का गड़बड़ झाला किया जा रहा है।
सोचने वाली बात यह है कि पटवारी के द्वारा दिए गए प्रतिवेदन में घासीराम पिता दादू राम अनुसूचित जनजाति वर्ग का दर्शाया गया है और वर्ष 1926-28 के मिसाल में भी वह गोड़ जाति से दर्ज है किन्तु पोड़ी उपरोड़ा के तत्कालीन तहसीलदार द्वारा इन सारे तथ्यों को अनदेखा कर कर इतवार सिंह को बेजा लाभ पहुंचाने व रूप सिंह के वास्तविक अधिकार को कुचल कर वंचित करने का काम किया गया है।एक गलत आदेश का खामियाजा यह आदिवासी परिवार भुगत रहा है और दाने-दाने को मोहताज है।
इस पूरे मामले में कलेक्टर से शिकायत की गई है लेकिन नतीजा शून्य है।
आश्चर्यजनक बात यह है कि घासीराम की मृत्यु को लेकर जो प्रमाण पत्र जारी किया गया है उसमें भी एक प्रमाण पत्र में दयाराम तो दूसरे में दादूराम पिता के स्थान पर लिखा हुआ है। मृत्यु की तिथि एक है, गांव-पंचायत एक है, ऐसे में इस बात पर भी संदेह व्यक्त होता है कि क्या सचिव स्तर पर भी इसमें धांधली हुई है। यह खेल सचिव से लेकर तहसील स्तर पर किस तरह से खेला गया है और उक्त जमीन को खरीदने की कोशिश में लगे कुसमुण्डा निवासी रामनारायण श्रीवास की भूमिका को भी खंगाला जाना चाहिए।
प्रकरण में मिसल बंदोबस्त के समय से दर्ज होते आ रहे रिकार्ड की जांच वंशवृक्ष के आधार पर किया जाना जरूरी है। इसमें जिसकी भी गलती पाई जाए उस पर कठोरतापूर्वक अपराध पंजीबद्ध करने की आवश्यकता है।


