0 आदिवासी एक तरफ खदान,एक तरफ हाथी,एक तरफ शेर से जूझ रहे
0 प्रदेश में आदिवासियों का हो रहा शोषण, अधिकार दिलाने एक मंच पर लाया जा रहा
0 कोरबा में आयोजित हुआ शपथ समारोह, आदिवासी समाज के दिग्गज नेता, पूर्व विधायक, पूर्व आईएएस भी हुए शामिल
कोरबा। छत्तीसगढ़ प्रदेश में सरकार चाहे कांग्रेस की रही हो चाहे बीजेपी की,आदिवासियों के विकास की बड़ी-बड़ी बातें करती हैं लेकिन धरातल पर आदिवासियों का विकास नहीं हो रहा बल्कि वह शोषण का शिकार हो रहे हैं। उनके जल -जंगल- जमीन के अधिकार को छीना जा रहा है और इसके बदले में उनकी दुर्दशा हो रही है। उनके उत्थान के लिए, अधिकारों की रक्षा के लिए आदिवासियों को एक मंच पर लाने का काम शुरू किया गया है और यह बीड़ा छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले उठाया गया है। आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए हर स्तर की लड़ाई लड़ी जाएगी।
यह कहना है छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ आदिवासी नेताओं का, जो कोरबा में आयोजित हुए छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने पहुंचे थे। बुधवारी स्थित आदिवासी शक्तिपीठ में आयोजित छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज का शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित प्रदेश भर से आए पदाधिकारियों को आदिवासियों के विकास के लिए कार्य करने की शपथ दिलाई गई।
0 आदिवासियों को एक मंच पर लाया जा रहा है : सोरी
इस अवसर पर मीडिया से चर्चा करते हुए पूर्व विधायक पूर्व आईएएस अधिकारी शिशुपाल सोरी ने कहा कि आदिवासियों की विविध समस्याएं हैं जिनसे वे जूझ रहे हैं। अलग-अलग मुद्दों पर अलग-अलग समस्याएं हैं जैसे खनन क्षेत्र में विस्थापन की समस्या है तो वन बहुल क्षेत्र में वन अधिकार की समस्या तो मैदानी क्षेत्र में जमीन से संबंधी समस्या बनी हुई है। आदिवासियों को एक मंच पर लाने की जरूरत महसूस की जा रही थी इसके लिए हमने सारे आदिवासियों को एक मंच पर लाया है, उनकी आवाज सरकार तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है। आदिवासी समाज का गठन पहले ही हो चुका है किंतु ब्लॉक व जिला स्तरीय समिति का शपथ समारोह आज आयोजित हुआ।
0 26 जिलों के आदिवासी एकजुट किये गए : राय

गुंडरदेही विधानसभा के पूर्व विधायक व छत्तीसगढ़ आदिवासी समाज के कार्यकारी अध्यक्ष राजेंद्र कुमार राय ने कहा कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी बिखरे हुए हैं जिन्हें जोड़ने का काम हो रहा है। छत्तीसगढ़ के 33 में से 26 जिलों में एकजुट किया जा चुका है। सब एक विचार से एक मंच पर आकर एक साथ मिलकर अपने अधिकारों के लिए कम करें, यही उद्देश्य है। उन्होंने बताया कि कोरबा जिले के केंदई गांव के पास 40 गांव की धरती धसक रही है। आदिवासी समाज जागेगा तो जीत हासिल होगी। पेड़ कटाई के सवाल पर कहा कि इस पर ब्रेक लगना चाहिए, खदान है तो पेड़ कटेगा लेकिन कुछ क्षेत्र छोड़ना भी चाहिए जहां जीव-जंतुओं का संरक्षण हो सके।
0 समर्पित आदिवासियों का बेहतर व्यवस्थापन नहीं: बोधराम

कटघोरा के पूर्व विधायक वरिष्ठ आदिवासी नेता बोधराम कंवर ने कहा कि आदिवासी लोग जंगल में रहते हैं। जल जंगल जमीन आदिवासियों का रहवास है लेकिन आदिवासियों का शोषण हो रहा है। उनका जल जंगल जमीन खत्म हो रहा है। उन्हें न्याय नहीं मिल पा रहा है। राष्ट्र के लिए समर्पित होकर वह अपना जल जंगल जमीन छोड़ रहे हैं लेकिन उनका बेहतर व्यवस्थापन नहीं हो पा रहा है, उनका बेहतर व्यवस्थापन होना चाहिए। उनके बच्चों को शिक्षा- चिकित्सा की बेहतर सुविधा मिलनी चाहिए। श्री कंवर ने कहा कि सरकार कोई भी हो, वह वही करती है जो उसकी पॉलिसी होती है लेकिन आदिवासियों के साथ चाहे कांग्रेस की सरकार हो चाहे बीजेपी की सरकार हो जैसा बर्ताव होना चाहिए, उनके हित के लिए जैसा काम करना चाहिए,जैसा सोचना चाहिए वैसा नहीं हो रहा है। जंगल तो बर्बाद हो रहा है,कोरबा जिले में तीन बड़ी कोयला खदानें हैं जिसमें पूरा जंगल उजड़ रहा है। जंगल उजाड़ कर खदान खोले जा रहे हैं लेकिन संरक्षण करना जरूरी है।
0 प्रभावित आदिवासी इलाकों का दौरा कर जान रहे समस्या: कंवर

युवा आदिवासी नेता रिटायर्ड पुलिस अधिकारी मोहिंदर सिंह कंवर ने कहा कि वे आदिवासियों के मुद्दे पर काम कर रहे हैं। हाल ही के दिनों में उन्होंने कोरबी, तेन्दुटिकरा गांव का दौरा किया जो एसईसीएल की रानी अटारी, विजयपुर वेस्ट खदान से प्रभावित है। यहां के गांवों का अधिग्रहण खनन कार्य के लिए किया गया लेकिन आज ग्रामीणों को पानी नहीं मिल रहा है। जंगल कट रहे हैं जमीन धंस रही है, स्थिति गंभीर है। व्यवस्थापन का काम पूरा हुआ ही नहीं और ग्रामीणों को विस्थापित करने पर प्रशासन अड़ा है। इस बारे में शासन से बातचीत हुई है उन्होंने आदिवासी समाज किस तरह से प्रभावित हो रहा है उसके संबंध में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। हम अध्ययन करने के बाद जल्द ही अपनी रिपोर्ट उनके समक्ष प्रस्तुत करेंगे।
0 सरकार सिर्फ धंधा कर रही, जमीन के बदले जमीन देना चाहिए

पंडो जनजाति समाज के अध्यक्ष ग्राम कुम्हारीडीह निवासी बृजलाल पंडो ने कहा कि वह जल जंगल जमीन की रक्षा के लिए वर्षों से काम करते आ रहे हैं। उनके आदिवासी क्षेत्र में 48 गांव हैं। रानी अटारी में सरकार सिर्फ धरती माता के कलेजा को काट कर कोयला निकाल रही है, पेड़ काट रही है, गांव उजड़ रहे हैं। 13 पंचायत के 48 गांव प्रभावित हैं, खदान के 8 किलोमीटर के दायरे में CSR मद से विकास करने का एसईसीएल का दायित्व है किंतु आज तक कोई भी विकास कार्य नहीं किया गया है। सिर्फ कोयला निकाल रहे हैं, गांव-बस्ती उजाड़ रहे हैं। जमीन धसक रही है, पानी सूख रहा है लेकिन सरकार सिर्फ धंधा कर रही है। छत्तीसगढ़ में जितने कोल माइंस प्रभावित एरिया हैं उनसे प्रभावित लोगों के जीवन यापन को शासन द्वारा नुकसान किया जा रहा है, उनकी बातों को अनसुना कर रहे हैं। मेरी मांग है कि विस्थापित होने वालों को मुआवजा न देकर सीधे जमीन देनी चाहिए। अगर यही हालत रहा तो जल जंगल जमीन की रक्षा के लिए आंदोलन करेंगे।
0 आदिवासियों को विस्थापन से बचाना मूल उद्देश्य : मुरली दास संत

एकता परिषद के नेता मुरली दास संत ने कहा कि जल जंगल जमीन की रक्षा के लिए वह आदिवासी समाज के साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के जल जंगल जमीन और आदिवासियों को बचाने के लिए कार्ययोजना बनाई जा रही है। इस मामले को कानूनी क्षेत्र में भी लेकर हम जाएंगे। पानी बिजली की सुविधाओं के साथ-साथ आदिवासियों मूल निवासियों के स्वाभिमान को बढ़ाने उनके आत्म सम्मान को बचाने की लड़ाई लड़ी जा रही है। आदिवासी मूल निवासी खदान जनित समस्या से जूझ रहे हैं और जहां खदान नहीं है वहां हाथी प्रभावित कर रहे हैं।आदिवासियों को विस्थापन से बचाना मूल उद्देश्य है, मूल निवासियों को बचाने के लिए कार्य योजना बनाकर अमलीजामा पहनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि परसा केते से लेमरू तक पेड़ काटे जा रहे हैं तो आदिवासी कहां जाएंगे? प्राकृतिक संसाधनों का दोहन दायरे में रहकर करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है लेकिन इतने औद्योगिकरण हुए हैं कि आज यह धान का कटोरा बालू डस्ट रेत का कटोरा बन गया है। विश्व जल दिवस पर जल संकट दिख रहा है। खदान के लिए गांव उजाड़े जा रहे हैं, पानी बिजली बसाहट की समस्या के साथ-साथ ग्रामीण किसान अपना धान नहीं बेच पा रहे हैं। अगर सरकार बात नहीं सुनेगी तो सड़क पर उतरकर आंदोलन होगा, जमीनी स्तर पर लड़ना होगा। एक तरफ हाथी एक तरफ शेर तो एक तरफ कोयला खदान की समस्या से आदिवासी जूझ रहे हैं। स्थिति यह है कि खदानों के कारण जल स्तर नीचे जा चुका है। चोटिया तरफ तो पानी की इतनी दिक्कत है कि सुख-दुख के काम में टैंकर लगवाना पड़ता है
0 विकास जरूरी लेकिन पर्यावरण की रक्षा के साथ : ननकीराम

छत्तीसगढ़ के पूर्व मंत्री वरिष्ठ आदिवासी नेता ननकी राम कंवर ने वृक्षों की कटाई पर कहा कि वृक्ष लगाना जरूरी है, जहां जरूरत है वहां पर काटें लेकिन उससे ज्यादा वृक्ष भी लगा दें लेकिन ऐसा नहीं कर रहे है।सरकार को जहां आमदनी है, कोयला विकास के लिए जरूरी है पर पर्यावरण को बचाना भी जरूरी है।जिसकी जमीन लेते हैं उसके एवज में नौकरी देंगे ऐसी बात करने के बाद बीच में नौकरी देना बंद कर दिए। जमीन का मुआवजा के बदले अब जमीन की मांग के सवाल पर कहा कि जिस समय बालको के लिए जमीन का अधिग्रहण हो रहा था उस समय हम लोगों ने नौकरी की आवाज उठाई, क्षतिपूर्ति के साथ बसाहट भी देना पड़ेगा, इसकी मांग रखी लेकिन बैठक हुई और बालको के अधिकारियों ने थाना में बात करके इस आंदोलन को ही खत्म करवा दिया।