0 लोगों में आम धारणा- पैसा देते हैं, इसलिए नहीं होती कोई कार्रवाई
कोरबा। जिले के विभिन्न आवासीय और शहरी क्षेत्र में भीड़भाड़ वाली सड़कों पर बेधड़क होकर तेज रफ्तार से दौड़ते परिवहन वाहनों की रफ्तार हर समय लोगों को किसी न किसी दुर्घटना की अनहोनी से भयभीत किए हुए है। खासकर इन दिनों जिस पैमाने पर रेत और मिट्टी परिवहन में लगे ट्रैक्टरों व टीपरों की संख्या में वृद्धि आई है और बेखौफ होकर जिस तरह से उनकी रफ्तार हर सड़क पर बढ़ती जा रही है, उसने कानून व्यवस्था और रोकथाम की प्रणाली पर भी सवाल उठा दिए हैं।
आम लोगों में यह धारणा तेजी से बढ़ने लगी है कि जिन अधिकारियों/विभाग पर इनकी रफ्तार और परिवहन को लेकर सड़कों के चिन्हांकन के साथ-साथ अन्य तरह की कार्रवाई का सम्पूर्ण कानूनी व प्रशासनिक जिम्मा है, उन्हें यह लोग पैसा देकर मुंह बंद करा देते हैं और इसीलिए आम जनता की कोई सुनवाई नहीं होती है। वरना ऐसे और कौन से कारण हैं कि इन पर कार्रवाई में कोताही बरती जाती है..?
कोरबा मुख्य शहर के बीच से होकर दौड़ते तेज रफ्तार टिपर और ट्रैक्टरों के कारण लोग काफी भयभीत होने लगे हैं। पावर हाउस रोड, ओव्हरब्रिज और कोरबा मुख्य शहर से सीतामढ़ी के मध्य जो कि व्यस्त आवागमन का क्षेत्र है और सड़कें भी संकरी हैं, इसके बावजूद टीपर और ट्रैक्टर की रफ्तार 60 से 70 किलोमीटर प्रति घंटे से कम नहीं होती। जहां थोड़ी सी सड़क खाली मिली, ये अपनी रफ्तार बढ़ा देते हैं और इसके चक्कर में कई बार हादसे या तो हो जाते हैं या होते-होते रह जाते हैं। आज ही सुबह के वक्त एक बड़ा हादसा मुख्य मार्ग में होते-होते बच गया जिसमें एक ऑटो यदि समय रहते नहीं रुकती तो टीपर उसे चपेट में ले लेता और जन-धन की हानि हो जाती। यह घटनाक्रम देखने वालों में एकबारगी सिहरन पैदा हो गई और वे बढ़ती रफ्तार को लेकर चिंतित भी हुए। इन्होंने बताया कि आखिर क्या वजह है कि शहर के भीतर भी इस तरह के वाहनों की रफ्तार कम नहीं हो रही है? वैसे तो इस मुख्य रास्ते से ट्रैक्टर हो या टीपर या दूसरे मालवाहन, उनका आवागमन होना ही नहीं चाहिए। व्यावसायिक के साथ-साथ यह आवासीय मुख्य क्षेत्र भी है। छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बड़े बूढ़ों का भी आना-जाना लगा रहता है। संकरी सड़क और सड़क तक लगे दुकानों के साथ-साथ खासकर अंग्रेजी शराब दुकान के सामने जो नजरा सुबह और फिर शाम से लेकर रात तक देखने को मिलता है, उस समय अक्सर हादसे की आशंका से लोग भयभीत रहते हैं। शराब दुकान के सामने तो शाम के बाद अराजकता का माहौल सा निर्मित रहता है। बीच सड़क तक मोटरसाइकिल खड़ी कर लोग शराब खरीदने जाते हैं। इसके अलावा अन्य लोग अपनी कार व दूसरे वाहनों को आड़ा-तिरछा करके खड़ी कर देते हैं,आने-जाने वालों के लिए काफी कम ही जगह बचती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि किसी के भी मन में कानून के प्रति भय नाम की चीज नहीं रह गई है और ना ही उन्हें किसी तरह की कार्रवाई की चिंता रहती है।
सड़क पर ना कोई पेट्रोलिंग होती है और ना कोई कार्रवाई जिसके कारण उल्लंघन करने वालों के मनोबल भी बढ़े हुए हैं। कभी कभार सायरन बजाती गाड़ी अपनी औपचारिकता निभाते निकल जाती है लेकिन मजाल है कि जो बीच सड़क पर खड़े हों, जिनकी गाड़ियां बेतरतीब खड़ी हों, उन पर कोई कार्रवाई हो जाए। पुलिस के बड़े अधिकारी बैठकों में अक्सर इस बात की हिदायत देते हैं कि अपराधियों और कानून का उल्लंघन करने वालों के मन में पुलिस का भय होना चाहिए और नागरिकों में विश्वास बढ़ना चाहिए, किंतु अनेक मामलों में ठीक उल्टा हो रहा है।

मौजूदा दिनों-दिन बिगड़ती व्यवस्थाओं से आम जनमानस में आक्रोश के साथ क्षोभ भी है, वे कानून के प्रति बनती-बिगड़ती धारणाओं के मध्य इस बात को लेकर मलाल भी रखते हैं कि आखिर वह कहां अपनी बात रखें कि उनकी सुनवाई हो क्योंकि हर स्तर पर उन्हीं का बोलबाला है जो नियमों का उल्लंघन करते हुए पालन कराने वालों की जेब भरकर अपने स्वार्थसिद्धि में लगे हुए हैं। लंबे समय से जमे हुए सभी तरह के अधिकारियों से जान- पहचान बढ़ जाने का भी फायदा अनेक उल्लंघनकर्ता उठा रहे हैं। व्यवस्था और नीतियों में सख्ती नहीं होने के कारण परेशानी आम जनता को ही उठानी पड़ रही है।